Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 297
________________ २६४ आहारो तमूलं इय जीवियधणजोव्वण इ बहवे जाणता इह लोगंम्मि य अइदुक्ख उक्कत्तिऊण कवयं वारसहस्सेहिं वि एक्कसमएण सोक्खं एक्काण निसा निज्जइ एक्काण पाणभोयण एक्काण वित्थरिज्जइ एक्के कंचणपडिबद्ध एक्के चंदणमयनाहिएक्के दोघट्टघडानि [ व ]हा heat एक्के नयणं तच्चिय एक्के पट्टसूयविवह पूरिति मोरहाई एक्को विमोक्कारो एत्थ उपरिणाम एत्थ जम्हा दयागुणमेव महामो उ एयस्स पुण निमित्तं एयाइं असिक्खियपंडियाई एयाइं ताइं चिरचिंतियाई एयाण कमलदलए एवं अपरि( प्पड ) वडिए एवं च एत्थ बहुसो कडुपि भन्नमाणो Jain Education International 2010_02 क २५०/७१ | कंममओ संसारो ७१।४८ ३००।२१४ | कालन्नुओ विणीओ ७१।१९४ किं एत्तो पावयरं किं कट्ठे अन्नाणं किं न करेज्ज अकज्जं कुसको डिबिंदुठिय कुसुमाहरणवित्तिं को जाणंतो रायं करेइ ३४५।२१७ कोजाइ हिययगयं १०१।१९७ को नाम नरो चुंबे ९९।१९७ | को नेच्छइ संजोगो ९८।१९७ कोहो माणो माया ९२।१९६ ९७।१९७ ९६।१९७ ९०।१९६ २९१।२१३ १००/१९७ ९४ । १९६ ६९०।२४७ ४९।१८३ ३४।१८१ काऊण धम्मबुद्धी कामिणिखंधविलग्गो १२४।१९९ ५७८५ गलइ बलं उच्छाहो | ठित्ति सुदुब्भेओ गंमागं न याइ ४६।११५ २०२।२०५ | गुणसुट्ठियस्स वयणं १०।१८७ | गुरुथेरतवस्सिगिलाण१५२।६२ | गुरुसिणेहबद्धबंधुयण २४।१७६ ख खइयं वरं विसं पि हु |खरपवणविहुयतामरसखंती य मद्दवज्जवमुत्ती खंत्ती गुत्ती ( ? ) य मद्दवज्जव खीरोयहिंमि य तहा ३४।१६८ ९१।८७ | घणघाइचउक्कयंमि २४ । १८९ घणविवरंतरखणदिट्ठघरवासे वाढ घेप्पइ जलंमि मच्छो For Private & Personal Use Only ग घ जंबु ४९।११५ १३२।१९९ ५५/३१ ३३।१६८ १००१२३ ६९।११९ ७।१८७ ७०।४८ ६८६।२४७ ७४।१९४ १४ । १६५ १८।१७५ १०३।३८ ११९४० १२५।१९९ ६७/४७ २५।१३ १८४/६५ ७८७।२५७ ४।१७९ ५१८४ ७१ ।१२० २२।१० ७४९।२५२ ११६।२१ २७०।२११ ६९।४८ १११।३९ २८।१४४ www.jainelibrary.org

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