Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 300
________________ २६७ ३४६२१७ ३२२।२१५ १७६६४ २९३७६ ६६।११८ ३२।१३ १२०।१५६ ६९३।२४७ ६७.३३ ११२।३९ ५९।११६ ६८९।२४७ १८।१४२ २००।१०० २९।१४४ परिशिष्टम्-१ जंबुचरिये उद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥ भेसज्जं पि हु मंसं देई १२७।१९९ | वडवीय-सुरगिरीणं वयणं वाहाजुयलं मणपरमोहिपुलाए ७८४।२५६ वयसमणधम्ममन्नइ तमेव सच्चं ६२८५ | वसणविओओ इयरो वि मन्नइ य ताणसमाणं १८।१०७ | वसणावडिओ वि नरो महरिहभवणरयणचामीयर ११५१२१ | वसहिकहनिसेजिं(ज्जि )दियमंसं पुण पयडं चिय १३३।१९९ वंचिज्जइ एस जणो मंसट्ठिरुहिरमज्जावस ७३।१९४ | वंदणरिहंताणं मंसस्स वज्जणगुणा १३१।१९९ वंसि चडंति धुणंति कर मंसासिणो नरस्स हु १२६।१९९ वाही इट्टविओगं माणुसत्ताओ पब्भट्ठो २७३।२११ विज्जुलया इव चवला माणुस्स-खेत्त-जाई २८३१२१२ विमलगुरुभत्तिनिब्भरमासाई सत्ता २४१६९ विसमसहावो मयणो मिच्छादसणमहणी ६८२१२४६ विसयविसं हालहलं मुत्तपुरीसाईयं सेफा ३१२।२१५ | वेसं पि सिणेहेण व मोहणवेल्लि व्व इमं ६०।११६ सइ सासयंमि थामे रत्तंतधवलपम्हल ३१७॥२१५ | सक्का सीहस्सवणे रमयंति विरूवं पि हु ३०११४४ सच्चं हरंति हिययं रमसु जहिच्छं सुपुरिस ! १०२।३८ सच्चं हीरइ हिययं रयणायरं पि पत्तो २८७।२१३ | सच्चं हो हरइ मणं रयणारे व्व नदु(टुं) १०६।१९७ | सज्झायझाणविणया रसरुहिरमंसमेओ ३०८।२१४ | सत्तर्मि च दसं पत्तो रागाओ दोसओ २६८।२११ समभावो सामइयं रूवेण किं गुणपरक्कमवज्जिएण २१८।२०७ | सम्मत्तंमि उ लद्धे रे जीव ! संपयं चिय ११५।३९ | सम्मत्तदायगाणं रोयाविति रुयंति य ११।१८७ सम्मत्तम्मि उ लद्धे रोविंति रुयावंति य १९।१४२ सयणेण धणेण व सयलम्मि वि जीवलोएँ लहिऊण दुल्लहं चिय | सयलावायविमुक्त्तणओ ११३।३९ सव्वजलमज्जणाई सव्वनरामरसोक्खं वच्चइ जत्थ अउन्नो ६।३५ | संकुइयबलीचम्मो २४८२ ४४।१४७ १०६।३८ १०४।३८ १०५।३८ ६९१।२४७ ३३२।२१६ ६९७।२४८ ९०८७ ३६६ ३७६ ४८।११५ ३९।६ ६८७।२४७ १२९।१९९ ३४४।२१७ ३३३।२१६ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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