Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 262
________________ सोलसमो उद्देसओ सच्छं पि हवइ सहसा पइन्नपडवासधूसरच्छायं । सुसुगंधबहलमोयं नहभोयं वीरभवणं च ॥ ४६७॥ सुव्वंति गवक्खयसंठियाण जुवईण मणहरुल्लावा । निज्जियवम्महरूवो हल सहिओ एस सो जंबू ||४६८ ॥ निज्जियरइरूवाओ घेत्तुं सोहम्मगुणसमिद्धाओ । सामन्ननिच्छियमई सुहम्मचलणंतिए चलिओ ॥४६९ ॥ नहभोयं रविरहियं भारहवासं व जिणवरविहीणं । एएण विणा एयं होही सुन्नं व मगहपुरं ॥ ४७०॥ रयणि व्व चंदरहिया कमलिणिसंडं व सिसिरपरिदड्डुं । पेयवणं चिय होही रायगिहं वज्जियमिमेण ॥ ४७१ ॥ एक्का य भइ विलया एसो सो पंचबाणसमरूवो । हल सहि पेच्छसु पेच्छसु मणवयणाणंदणो कुमरो ॥ ४७२ ॥ अन्नेक्का परिमग्गइ पढमं चिय सहियणं समारूढं । पासायवरगवक्खे हत्थालंबो अइतुरंती ||४७३ ॥ अन्ना तुंगनियंबा रूसइ सहियाण दारदेसंमि । अचयंती गंतूणं पढमं संरुद्धमग्गाणं ॥४७४॥ अन्ना गरुयपओहरगुरुभारकिलंतदेहतणुमज्झा । नीससइ च्चिय नवरं असमत्था नीहरेऊण ॥४७५ ॥ अन्ना वि धावमाणी मुत्ताहलहारखुडियसंपसरा । मयबिंदु व्व मुयंती बाला पडिहाइ महिवट्ठे ॥४७६ ॥ एक्का गुरुजणलज्जाएँ तह य कुऊहलनिब्भरत्तेण । दारं बहुसो पत्ता विणिग्गया तह वि न य बाहिं ॥ ४७७॥ कोऊहले अन्ना हियएण गुरुयणस्स पच्चक्खं । बाहिं विणिग्गया से भणिया वि न देइ पडिवणं ॥ ४७८ || Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only २२९ www.jainelibrary.org

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