Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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२४६
जंबुचरियम् कलगीयवंसवव्वीसतंतिवीणामुइंगरवकलियं । पुरओ मणाभिरामं पेच्छंतो दिव्वपेच्छणयं ॥६७३॥ देवाउयं असेसं एवं सो तत्थ भुंजिउं भोए । ठीइखएणुववज्जइ पुणो वि माणुस्सलोयंमि ॥६७४॥ कुलजाइरूवविन्नाणनाणसंमत्तसंवरसमेओ । विहुणियसंसारपहो भावियजिणवयणपरमत्थो ॥६७५॥ सिज्झइ विगयमलो सो भवत्तएणं च सुरभवंतरिओ । जो पुण होइ अगारी सेसविही होइ तस्सेसा ॥६७६॥ जहसत्तिवयपवन्नो जिणगुरुसाहूय(ण) पूयणरओ य । सम्मत्तभावियमणो भवभवणविरत्तभावो य ॥६७७॥ सद्धासंवेगजुओ 'नमो जिणाणं' ति भणिय पच्चूसे । पडिवुज्झइ विगयमलो सरीरजोगं अह करेइ ॥६७८॥ भत्तिब्भरनिब्भरंगो एक्कमणो अह जिणाण भवणंमि । वच्चइ इरियासमिओ असेसवावारपरिमुक्को ॥६७९॥ अवणेउं निम्मल्ले तत्थ गओ जिणवराण गंधड्ढे । निम्मवइ पवरपूयं दसद्धवन्नं मणभिरामं ॥६८०॥ एसा वि य कायव्वा जओ नियंतस्स गुरुमणपसाओ ।
धम्मज्झाणं च तओ झाणाओ निज्जरा विउला ॥६८१॥ भणियं च- "मिच्छादसणमहणी जणणी नेव्वाणगमणमग्गस्स ।
समदंसणसंसोहणी य पूया जिणिदाणं" ॥६८२॥ [ ] तह य जिणागमो
"सुणणं दंसणं चेव पूयणं पज्जुवासणं ।
संकहा य जिणिंदाणं नाधन्नो पावए नरो" ॥६८३॥ [ ] तओ- "पज्जालिउं पईवं धूयं उग्गाहिऊण गंधर्व्ह ।
अहिसेयसमालहणं कुणइ जिणिंदाण भत्तीए" ॥६८४॥ [ ]
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