Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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२४५
सोलसमो उद्देसओ
संपुन्नायारविऊ अट्ठारसपयसहस्सपरिपढिओ । भावणविसुद्ध.............त्तो वि उत्तमं पारं ॥६६१॥
परहियकरणेक्करया जेण जिणा हुंति सव्वे वि ॥६६२॥ सो भयवं कयकिच्चो जयजीवहिएक्कउज्जओ सययं । केवलिपरियायं विहरिऊण इह मणुयलोयंमि ॥६६३॥ खविऊण सेसकम्मं संसारनिबंधणं चउवियप्पं । आउयनाम गोयं निस्सेसं वेयणीयं च ॥६६४॥ देहं मोत्तूण तओ समएणेक्केण सिद्धिखेत्तुहूं । लोयग्गे परिसिज्झइ गंतूणं तत्थ सो भयवं ॥६६५॥ साइअपज्जवसाणं निरुवमसुहमुत्तमं अणुहवंतो । सम्मत्तनाणदंसणविसुद्धअप्पा हवइ मुक्को ॥६६६॥ सम्मत्तसीलकलिओ जो य जई नाणगुणगणायड्ढो । वीरियमगूहमाणो नियसत्तीए सया जयइ ॥६६७॥ संघयणाउयबलकालवीरियसमाहिसंपयविगल्ला । कम्माइगरुयओ वा न य नेव्वाणं पसाहेज्जा ॥६६८॥ सोहम्माइविमाणेसु सो वि सव्वट्ठसिद्धिचरिमेसु । उववज्जइ कयउन्नो भासुरबोंदी सुरवरिंदो ॥६६९॥ तत्थ सुरसेलसोक्खं दिव्वं दिव्वाहि सुरवहूर्हि समं । उवभुंजइ चिरकालं अणोवमं मणवहाराहिं ॥६७०॥ दिव्वविलित्तंगवरो दिव्वालंकारभूसियसरीरो । दिव्वनियंसियवत्थो दिव्वजुई दिव्वदेविंदो ॥६७१॥ दिव्वभवणोयरगओ दिव्वे सिंहासणे सुहनिविड्डो । दिव्वविलयाहि कीरइ पुरओ नट्टं मणभिरामं ॥६७२॥
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