Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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२३१
सोलसमो उद्देसओ अन्नाए भणियं-दीणंमि जुवइसत्थे जइ पहवइ होज्ज मुद्धि ! ताऽणंगो ।
एसो पुण रागगइंदनिद्दलणपच्चलो सहइ ॥४९१॥ अन्नाए भणियं-वच्छत्थलभोएणं नज्जइ नारायणो व्व सहि ! एसो । अन्नाए भणियं-होज्ज फुडं महुगहणो जइ अंजणसप्पभो हुँतो ॥४९२।।
उत्तत्तकणयवन्नो एसो पुण तेण विहडए दूरं । अन्नाए भणियं-होज्ज हला कंतीए संपुन्नो पुन्निमायंदो ॥४९३॥ अन्नाए भणियं-सहि एस होज्ज चंदो खंडिज्जइ जइ य होइ सकलंको ।
एसो कलंकरहिओ संपुन्नो सहइ निच्चं पि ॥४९४॥ अन्नाए भणियं-सहि सत्तीए नज्जइ पुरंदरो चेव होज्ज पच्चक्खं । अन्नाए भणियं-होज्जा सो देविंदो जइ नयणनिरंतरो हुँतो ॥४९५॥
अवि य- वेल्लहलनिविडदेहो सहि एसो तेण विहडए दूरं । अन्नाए भणियं-अंगेहि नज्जइ इमो उमावई होज्ज पच्चक्खं ॥४९६॥ अन्नाए भणियं-घडइ तिनयणसमाणो जइ हुँतो जुवइघडियवामद्धो ।
एसो संपुन्नंगो परंमुहो तह य जुवईण ॥४९७।। इय जाव किं पि घडिओ सुराण विलयाहिं ताव अन्नाहिं । विहडाविज्जइ दूरं वियड्डनारीहिं अच्चत्थं ॥४९८॥ ताव य जंबुकुमारस्स रूवलायन्नअवहियमणाओ । आढत्ताओ काउं विलयाओ बहुविहं चेटू ॥४९९।। एक्का भासइ उच्चं अन्ना रुणुरुणइ महुरसद्देण । अन्ना वि पढइ गाहं अन्ना पंचं समालवइ ।।५००॥ अन्ना वंसं वायइ अन्ना वीणं पुणो पुणो छिवइ । जइ कह वि कुवलयच्छी एसो परिनियइ [य] मुहुत्तं ।।५०१।। विलयायणस्स एवं अणेयवावारकरणसीलस्स । अवहियमणस्स सुइरं नयराओ विणिग्गओ जंबू ॥५०२॥
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