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पैतालीस आगम सिद्ध होता है। भाषा-वैज्ञानिक भी इसमें अध्ययन की प्रचुर सामग्री पाते हैं। वर्शन और प्राचार
सूत्रकृतांग का अदइज्जणाम (आर्द्र कीयाख्य) अध्ययन उस समय के विभिन्न मतवादों का संकेत देता है । सुन्दर घटना प्रसंग के साथ-साथ वहां अनेक दर्शन-पक्षों के प्राचार का सहजतया उद्घाटन हो जाता है । प्राककुमार आर्द्र कपुर के राजकुमार थे। उनके पिता ने एक बार अपने मित्र राजा श्रेणिक के लिए बहुमूल्य उपहार भेजे । उस समय आर्द्र ककुमार ने भी अभयकुमार के लिए उपहार भेजे। राजगृह से भी उनके बदले में उपहार आये । आर्द्र ककुमार के लिए अभयकुमार की ओर से जिन मूति के रूप में उपहार प्राया । उसे पाकर आर्द्र ककुमार प्रतिबुद्ध हुये । जाति-स्मरण ज्ञान के आधार से उन्होने दीक्षा ग्रहण की और वहां से भगवान महावीर की ओर विहार किया। मार्ग में एक-एक कर विभिन्न मतों के अनुयायी मिले। उन्होंने पाककुमार से धर्म-चर्चाएं की। आर्द्र ककुमार मुनि ने भगवान महावीर के मत का समर्थन करते हये सभी मतवादों का खण्डन किया । वह सरस चर्चा-प्रसंग इस प्रकार है।
गोशालक-पाक ! मैं तुम्हें महावीर के विगत जीवन की कथा सुनाता हूं। वह पहले एकान्त विहारी श्रमण था । अब वह भिक्षु-संघ के साथ धर्मोपदेश करने चला हैं। इस प्रकार उस अस्थिरात्मा ने अपनी आजीविका चलाने का ढोंग रचा हैं । उनके वर्तमान और विगत के आचरण में स्पष्ट विरोध है।
आर्द्र क मुनि-भगवान् महावीर का एकान्त-भाव अतीत, वर्तमान और भविष्य, इन तीनों कालों में स्थिर रहने वाला है। राग-द्वेष से रहित वे सहस्रों के बीच रहकर भी एकान्त-साधना कर रहे हैं । जितेन्द्रिय साधु वाणी के गुण-दोषों को समझता हुआ उपदेश दे, इसमें किंचित् भी दोष नहीं है । जो महाव्रत, अणुव्रत, प्रास्रव संवर आदि श्रमण-धर्मों को जानकर,विरक्ति को अपनाकर कर्म-बन्धन से दूर रहता है, उसे मैं श्रमण मानता हूँ।
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