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पैंतालीस भागम
वंदित सुत्त
इस सूत्र का प्रारम्भ 'वंदित्तु सव्वसिद्ध' इस गाथा से होता है और यही इसके नामकरण का आधार है। ऐसी मान्यता है कि इसकी रचना गणधरों द्वारा की गई । अनेक आचार्यों ने टीकाओं की रचना की, जिसमें श्री देवसूरि, श्री पार्श्वसूरि, श्री जिनेश्वरसूरि, श्रीचन्द्रसूरि तथा श्री रत्नशेखरसूरि आदि मुख्य हैं । चूर्णि की भी रचना हुई, जो इस पर रचे गये व्याख्या साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन है । इसके रचयिता श्री विजयसिंह थे । रचना - काल ११५३ विक्रमाब्द है । ' वंदित्तु सुत्त' की अपर संज्ञा 'श्राद्ध प्रतिक्रमण - सूत्र' भी है । इसे आवश्यक से सम्बद्ध ही माना जाना चाहिए ।
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इसि भासिय ( ऋषिभाषित)
ऋषि से यहां प्रत्येक बुद्ध का प्राशय है । यह सूत्र प्रत्येक बुद्धों द्वारा भाषित या निरूपित माना जाता है । तद्नुसार इसकी संज्ञा 'ऋषिभाषित' हो गई । इसके पैंतालीस अध्ययन हैं, जिनमें प्रत्येक बुद्धों के चरित वर्णित हैं । इसके कतिपय अध्ययन पद्य में हैं तथा कतिपय गद्य में । कहा जाता है कि इस पर नियुक्ति की भी रचना की गई, पर, वह अप्राप्य है ।
५. नन्दी सूत्र
नन्दी-सूत्र : रचयिता
नन्दी - सूत्र के रचयिता श्री दृष्यगणी के शिष्य श्री देववाचक माने जाते हैं । कुछ विद्वानों के मतानुसार श्री देववाचक, श्री देवद्धिगणी क्षमाश्रमण का ही नामान्तर है । देववाचक और देवद्धिगणी क्षमाश्रमण दो व्यक्ति नहीं हैं, एक ही हैं, पर, एतत्सम्बद्ध सामग्री से यह स्पष्टतया सिद्ध नहीं होता । दोनों दो भिन्न-भिन्न गच्छों से सम्बद्ध थे, कुछ इस प्रकार के पुष्ट साक्ष्य भी हैं ।
स्वरूपः विषय-वस्तु
ग्रन्थ के प्रारम्भ में पचास गाथाएँ हैं । प्रथम तीन गाथाओं में ग्रन्थकार द्वारा अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान् महावीर को प्रणमन करते हुए
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