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"हम लोग नहीं जानते परन्तु हमारे गांवमें एक बुढ़िया रहती है वह किस्से सुनाना जानती है" मैं अपनी कार लेकर उस वृद्धाके घर पहोंचा और जहांपर हम ठहरे थे उस डाक बंगलेपर वृद्धोको मेरे साथ चलनेकी विनंति की । पहिले तो उसने कुछ आनाकानी को परन्तु हमारी आग्रहभरी प्रार्थनाको स्वीकृत कर वह हमारे साथ चली आई । वृद्धाकी आयु एकसौ सालसे अधिकथीं और देखनेमें स्वास्थ्यभी अच्छा था। मैंने उस वद्धास किस्सा सुनाने की विनति की। उसने कहा की मैं किस्सा क्या कहूँ। हम लोग तो दुःख के मारे मर रहे हैं। हमारे इस गांवमें हजारो आदमी जन थे और वे सब लोग यहाँके पार्श्वनाथ जी के मंदिर (शिखरजी) में दर्शन पूजन करते थे। परन्तु आज यहाँपर ईसाईयोंने ऐसा अड्डा जमा लिया है कि वे सब लोग ईसाई कर लिये गये हैं । मेरे सिवाए आज इस गांवमें सबने अपने धर्मको छोड़ दिया है । अभीभी हमारे गांवके लोग फाल्गुणमें समैतशिखरजीके मंदिरमें दर्शन करने जाते हैं।
जैसे जैसे मैं वृद्धा की बात सुनता गया मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही। मैंने पुनः वृद्धा से प्रश्न किया कि माता आप मंदिरजीमें बोलने की विधिभी जानते हो? तब वृद्धाने हमको चैत्यवन्दनादि सब पाठ सुनाए । मैंने वहां के मंदिरजीके प्रबन्धक को बुलाया और पूछा कि यह क्या मामला है। यहाँपर ईसाईयोंने जब संस्थाए और प्रचार कार्य प्रारंभ किया था और इस प्रकार इन लोगोंको ईसाई बनाने की शुरुआत हुई थी तब तुमने समाचार क्यों नहीं दिये। तब उसने उत्तर दिया कि "मैं तो आजतक यह जानता ही नहीं था कि ये लोग जैन धर्मानुयायी हैं। मंदिरजीमें दर्शन करने आते तब समझता कि ये लोग कोई भील आदि होंगे"।
बन्धुओ वहां पर ईसाईमों ने मिशन स्थापित किया है और उसीमें शिक्षण संस्थाएं वगैरह स्थापित कर रखी हैं । हमने उस मिशन के प्रबन्धक को कहा कि हम आपको संस्था देखने के इच्छुक हैं।
तो उन्होंने पूछा कि क्या आप जैन हैं ? मैंने कहा कि हां। बस इतना सुनते ही उन्होंने संस्था दिखाने से इनकार कर दिया और कहा कि जैनियों को यह संस्था दिखाने का हमें आर्डर नहीं है।
सज्जनों! ऐसी एक संस्था ही नहीं बल्कि जैनेतरों की अनेक संस्थाएं मौजूद हैं जो हमारी जैन समाज के होनहार बालकों को वर्षोंसे हडप कर रही हैं।
___ इसलिये मैं आपसे सानुनय प्रार्थना किये बिना नहीं रह सकता कि आप स्थान स्थान में अपनी शिक्षण संस्थाएं स्थापन करें कि जिनके द्वारा हमारे बच्चे-जैन समाज के लाल उच्चतम लौकिक, औद्योगिक
और धार्मिक शिक्षण प्राप्त कर सकें ताकि हमारी समाज के होनहार बच्चे विधर्मी बनने से रूकें। और मिशन स्थापित कर जो बच्चे हमारी समाज के विधर्मियोंने छोन लिये हैं उनको पुन. अपने धर्ममें लाने की चेष्टा करें।
और जो कुछ हमारी समाज में थोड़ी बहुत संस्थाएं अव्यवस्थित रूपसे चल रही है उनमें संघटन और सहकार न होनेसे यथायोग्य कार्य करने से असमर्थ रहती हैं । इसलिये आवश्यक है कि सब जैन संस्थाएं किसी एक सुव्यवस्थित तंत्र के नीचे रह कर परस्पर सहयोग से शीघ्र सुधार करें ।
विधवाएं. यह प्रश्न विधवाओंका है जो हमारी जन संख्याके घटनेका एक कारण है । आज जैन समाजमें बालविवाह, वद्धविवाह, अनमेलविवाह कन्याविक्रयादिके कुपरिणामसे पच्चीस प्रतिशत विधवाएं विद्यमान हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा आदि का प्रबन्ध तो अलग रहा। प्रतिकूल इसके उनके साथ कई घरोंमें दासीकासा व्यवहार किया जाता है उनकी मांगलिक कार्यों में सम्मिलित होना निषेध है | बहुतसी वीधवाएं दाने दानेको तरसा करती है। उन्हें देख सुनकर पत्थरका हृदयभी पीघल जाता है। समाज उनकी ओर उपेक्षाकी दृष्टीसे देखता है इस कारण उसका भत्रंकर परिणाम हो रहा है।
___ इसलियजैन समाजका मुख्य कर्तव्य है की विधवाओंकी बृद्धि को रोकने के लिये बालविवाह, अनमेल विवाह, वृद्धविवाह तथा कन्या विक्रयकी कुप्रथाओंको सर्वथा दूर करे और इस समय जो विधवाएं विद्यमान है