Book Title: Jain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Author(s): Arhatdas Bandoba Dighe
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 246
________________ अध्यात्म-विकास को प्राप्त करता है अर्थात् मुक्ति पाता है। मुक्त हो जाने पर वह पुनः न उस अवस्था में आता है और न संसार में । अर्थात् मुक्त अवस्था में वह अनन्तशक्ति एवं अनन्तवीर्य धारण करके आत्मसुख में लीन हो जाता है। उस अवस्था में मन के कोई व्यापार नहीं होते, न इच्छाएं होती हैं, न व्याधियां होती हैं और न किसी प्रकार का कर्म-कषाय रह जाता है । अतः शरीर नष्ट होने पर मोक्षावस्था में जीव का अभाव नहीं होता परन्तु वहां भी वह शुद्ध ज्ञानमय तथा चेतनामय होकर रहता है ।' इस संदर्भ में यह भी उल्लेख कर देना आवश्यक होगा कि आगमिक गुणस्थानों और हारिनद्रीय उपर्युक्त वर्गीकरण में कोई अन्तर नहीं है। क्योंकि पहले चार में पहला गुणस्थान, पांचवो और छठी में चौथा, पांचवां और छठा गुणस्थान; सातवीं में सातवां और आठवां गुणस्थान तथा अन्तिम में आठ से चौदह गुणस्थान अन्तर्भूत हैं। योगबिन्दु के अनुसार आध्यात्मिक विकास की पाँच सीढ़ियाँ भी इन्हीं गुणस्थानों अथवा आठ दृष्टियों का ही संक्षिप्त रूप हैं। ये क्रम या सीढ़ियाँ इस प्रकार हैं--(१) अध्यात्म, (२) भावना, (३) ध्यान, (४) समता और (५) वृत्तिसंक्षय । ये पाँच सीढ़ियाँ मोक्ष प्राप्ति में उत्तरोत्तर श्रेष्ठ समझी गयी हैं। इन क्रमों द्वारा चारित्र का क्रमशः विकास होता हैं, जिनमें विविध प्रकार के आचार अथवा अष्टांग योग की प्रणालियाँ प्रयुक्त होती हैं । अर्थात् आत्मविकास के क्रम में योगी किन-किन साधनों एवं परिस्थितियों से गुजरता है, उनका संक्षिप्त वर्णन इनमें हुआ है । यहाँ इनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। ... (१) अध्यात्म- अपनी शक्ति के अनुसार अणुव्रत, महाव्रत को स्वीकार करके मैत्री आदि चार भावनाओं का भली भांति चिन्तन-मनन करना ही अध्यात्म है । अर्थात् अध्यात्म शब्द को यहाँ यौगिक एवं रुढ दोनों अर्थों में प्रयुक्त किया गया है । यौगिक अर्थ में आत्मा का उद्देश्य १. वही, १८४-८५ २. अध्यात्मभावनाध्यानं समतावृत्तिसंक्षयः । मोक्षेणयोजनाद्योग एष श्रेष्ठो यथोत्तरम् । -योगबिन्दु, ३१ ३. औचित्याद्रतयुक्तस्य, वचनातत्त्वचिन्तनम् । मैत्र्यादिभावसंयुक्त, मध्यात्म तद्विदो विदुः । -योगभेदद्वात्रिंशिका, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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