Book Title: Jain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Author(s): Arhatdas Bandoba Dighe
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

Previous | Next

Page 250
________________ योग का लक्ष्य : लब्धियाँ एवं मोक्ष २१९ योगसाधना के दौरान प्राप्त होने वाली लब्धियों का वर्णन वैदिक, बौद्ध एवं जैनयोग में क्रमशः विभूति, अभिज्ञा तथा लब्धियों के रूप में मिलता है और कहा है कि लब्धियों का उपयोग लौकिक कार्यों में करना वांछित नहीं है । वैदिक योग में लब्धियाँ : उपनिषद् में स्पष्ट उल्लेख है कि लब्धियों से निरोगता, जरा-मरण का न होना, शरीर का हल्कापन, आरोग्य, विषय - निवृत्ति, शरीर कान्ति, स्वर - माधुर्य, मलमूत्र की अल्पता, आदि प्राप्त होती है ।" इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की लब्धियों का वर्णन उपनिषदों, गीता, पुराण एवं हठयोगादि ग्रंथों में है, जिनका विवेचन-विश्लेषण करना यहाँ अभीष्ट नहीं है । यहाँ केवल योगदर्शन में वर्णित लब्धियों का परिचय ही अभिप्रेत है । योगदर्शन में यम, नियम आदि जो योग के आठ अंग कहे गये हैं, उनमें से प्रत्त्येक अंग की साधना से आभ्यन्तर एवं बाह्य दोनों प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । यम से प्राप्त लब्धियों अर्थात् विभूतियों के विषय में बताया गया है। कि अहिंसाव्रत को पालन करने वाले साधक के सान्निध्य में हिंस्र पशु भी अपना क्रूर स्वभाव छोड़ देते हैं, सत्यवती का वचन कभी मिथ्या नहीं होता, अस्तेयव्रत से रत्नसमृद्धि प्राप्त होती है । ब्रह्मचर्य से वीर्य संग्रह का लाभ होता है तथा अपरिग्रह से जन्म के स्वरूप का बोध हो जाता है । नियम से प्राप्त लब्धियों के विषय में कहा है कि अन्तर्बाह्य शौच के पालन से अपने शरीर के प्रति जुगुप्सा तथा अलिप्तता का भाव उदित होता है और चित्त की शुद्धि, आनन्द, एकाग्रता एवं इन्द्रियजय तथा आत्मदर्शन की योग्यता प्राप्त होती हैं । सन्तोष से उत्कृष्ट सुख, तप से शरीर एवं इन्द्रियों की शुद्धि, स्वाध्याय से अपने इष्ट देवता का साक्षा न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निभयं शरीरम् । लघुत्वमारोग्यमलोलुपत्वं वर्णप्रसादं स्वरसौष्ठवं च । गन्धः शुभोमूत्रपुरीषमल्पं, योगप्रवृत्ति प्रथम वदन्ति । 3 २. योगदर्शन, २/३५; ३६; ३७; ३८; ३९ । Jain Education International - श्वेताश्वतर, २।१२-१३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304