Book Title: Jain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Author(s): Arhatdas Bandoba Dighe
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 256
________________ योग का लक्ष्य : लब्धियां एवं मोक्ष २२५ उपयोग योगी. अपने आत्मगुणों के विकास के लिए अनासक्तभाव से कर सकता है। वैदिक योग में कैवल्य अथवा मोक्ष ___उपनिषद्, गीता, पुराण, योगदर्शन, योगवासिष्ठ आदि वैदिक ग्रन्थों में बताया गया है कि जब योगी चित् को पूर्णत: विशुद्ध बना लेता है, तब केवल्य अथवा मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष-प्राप्ति के अनेक उपाय भी निर्देशित हैं, जिनका उल्लेख यथास्थान ( चौथे, पांचवें अध्याय में ) किया गया है। फिर भी यहाँ मोक्ष की स्थिति एवं प्राप्ति के सम्बन्ध में संक्षिप्त विवेचन करना उचित होगा। अमृतविन्दूपनिषद् में मनावरोध को मोक्ष का उपाय बतलाते हुए योग के अभ्यास से ज्ञान प्राप्त करने तथा मुक्ति प्राप्त करने का उल्लेख है। ध्यानविन्दूपनिषद् एवं योगचूड़ामण्युपनिषद् के अनुसार कुण्डलिनी शक्ति के जाग्रत होने पर मोक्षद्वार का भेदन होता है। योगदर्शनानुसार जीवात्मा का सृष्टि के साथ कर्ता व भोक्तापन का सम्बन्ध अथवा पुरुष व प्रकृति का संयोग ही दुःख का कारण है। आगे कहा है कि द्रष्टा या पुरुष और मन के संयोग का कारण अविद्या है, और उस अविद्या के बन्धन को तोड़ने के लिए योग के अनेक उपाय हैं। वासना, क्लेश और कर्म ही संसार है अथवा संसार के कारण हैं। अतः इन वासनाओं को पूर्णतः नष्ट करके स्व-स्वरूप में अवस्थित हो जाना ही मोक्ष अथवा कैवल्य है। दूसरे शब्दों में वासना का क्षय ही मोक्ष अथवा जीवन्मुक्ति है, अथवा मन और पुरुष को १. अमृतविन्दूपनिषद्, ११५ २. योगात्संजायते ज्ञानं ज्ञानाद्योगः प्रवर्तते । . -त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद्, १९ ३. ध्यानबिन्दूपनिषद्, ६५.६९ ४. योगचूडामण्युपनिषद्, ३६-४४ ५. योगदर्शन, २०१७ ६. तस्य हेतुरविद्या ।-वही, २।२४ ७. तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम् । वही, १६३ ८. वासना प्रक्षयो मोक्षः सा जीवन्मुक्तिरिष्यते। -विवेकचूड़ामणि, ३१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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