Book Title: Jain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Author(s): Arhatdas Bandoba Dighe
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 273
________________ २४२ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन की, तो कोई भक्तियोग की। गीता में विभिन्न योग-मार्गों का वर्णन है। वेदान्तदर्शन ज्ञानयोग पर जोर देता है । बौद्ध-परम्परा में ज्ञान के साथ क्रियायोग का समन्वय किया गया है, परन्तु जैन योग में क्रिया-योग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, समतायोग, ध्यानयोग आदि सभी को अपेक्षा भेद से स्वीकार किया गया है। पारिभाषिक शब्दों को विशिष्टता-जैन-योग में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों का भी अपना विशेष महत्व है, क्योंकि इनका प्रयोग जैन परम्परा के वाङ्मय में ही उपलब्ध है। जैसे 'पुद्गल' शब्द को लें। जैनयोग के अनुसार इस शब्द का अर्थ जड़ वस्तु है, लेकिन बौद्ध योग में इसका प्रयोग आत्मा एवं चेतन के अर्थ में है। परीषह, आस्रव एवं कायोत्सर्ग शब्द जैन परम्परा के अपने शब्द हैं, जिनका उपयोग अन्यत्र नहीं मिलता। - इस प्रकार जैन योग अन्य योग परम्पराओं से साम्य रखते हुए भी अपनी कुछ ऐसी विशिष्टताओं का प्रतिपादन करता है, जिनका सम्बन्ध उसकी अपनी आधार-भूमि से है । चूँकि जैनयोग का मूल आधार श्रमण संस्कृति है, इसीलिए स्वभावतः इसकी योगविषयक प्रक्रिया में चारित्रिक और आध्यात्मिक गठन एवं उन्नयन की पृष्ठभूमि अन्य परम्पराओं से अधिक स्थिर और सुविस्तृत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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