Book Title: Jain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Author(s): Arhatdas Bandoba Dighe
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 251
________________ २२० जैन योग को आलोचनात्मक अध्ययन त्कार और ईश्वर प्रणिधान से समाधि को सिद्धि होती है। आसन द्वारा सर्दी एवं गर्मी की बाधा उत्पन्न नहीं होती। प्राणायाम से विवेकज्ञानावरण का क्षय एवं विविध प्रकार की धारणा के लिए मन की तैयारी होती है। प्रत्याहार से समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त होती है। इसी प्रकार अतीत-अनागत का ज्ञान, विभिन्न प्राणियों की बोलियों की पहचान दूसरों की चित्तवृत्ति का ज्ञान, शरीर की दीप्ति एवं हलकापन, आकाश-गमन आदि की प्राप्ति के साथ-साथ सर्वज्ञता भी प्राप्त होती है।' ___ इस प्रकार योगदर्शन में अनेक विभूतियों या लब्धियों का विस्तृत वर्णन प्राप्त है, जिनकी सिद्धियाँ जन्म, औषध, मन्त्र, तप, समाधि आदि से प्राप्त होती हैं। बौद्ध-योग में लब्धियाँ : बौद्ध परम्परा में लब्धियों का वर्णन अभिज्ञा नाम से मिलता है। बौद्ध योग के अनुसार अभिज्ञाएँ अर्थात् लब्धियां दो प्रकार की होती हैंलौकिक और लोकोत्तर ।५ लौकिक अभिज्ञाओं के अन्तर्गत ऋद्धिविध, 'दिव्यस्रोत, चैतीपयेज्ञान-पूर्वनिवासानुस्मृति एवं चित्योत्पाद अभिज्ञाएँ हैं जिनसे क्रमशः आकाशगमन, पशु पक्षी की बोलियों का ज्ञान, परचितविज्ञानता, पूर्वजन्मों का ज्ञान तथा दूरस्थ वस्तुओं का दर्शन होता है। लोकोत्तर अभिज्ञा की प्राप्ति तब होती है, जब साधक अर्हत् अवस्था को प्राप्त करके पुनः जनसाधारण के समक्ष निर्वाण-मार्ग को बतलाने के लिए उपस्थित होता है। जैन योग में लब्धियां: वैदिक एवं बौद्ध योग की ही भांति जैन योग में भी तप समाधि, ध्यानादि द्वारा अनेक प्रकार की लब्धियां प्राप्त करने का वर्णन मिलता १. वही, २१४०-४१, ४२, ४३, ४४, ४५, ४६ । २. वही, २०४९, ५३, ५४ ।। ३. वही, ३।५,१६, १७, १८, २६, ४०, ४१ ४२, ४५, ४८.५० । ४. जन्मोषधिमंत्रतपः समाधिजाः सिद्धयः । योगदर्शन, ४.१ ५. विशुद्धिमार्ग, मार्ग १, पृ० ३४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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