Book Title: Jain Tattva Sara
Author(s): Kanhiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharati Academy

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ प्राक्कथन जैन दर्शन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है। मोक्ष प्राप्ति में तत्त्वज्ञान का विशेष महत्त्व है। तत्त्वज्ञान में नवतत्त्व कहे हैं:- १. जीव, २. अजीव, ३. पुण्य, ४. पाप, ५. आस्रव, ६. संवर, ७. निर्जरा, ८. बंध और ९. मोक्ष । यथा: जीवाजीवा पुण्णं पावासवसंवरो य निज्जरणा। बंधो मुक्खो य तहा नवतत्ता हुंति णायव्वा।। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने चेतन-अचेतन का वर्णन 'जीव-अजीव तत्त्व' पुस्तक में, शुभयोग और अशुभयोग के स्वरूप का विवेचन 'पुण्य और पाप तत्त्व' पुस्तक में, अशुभयोग की प्रवृत्ति का विवेचन आस्रव-तत्त्व के रूप में, अशुभ योग के निरोध का विवेचन संवर तत्त्व के रूप में 'आस्रव-संवर तत्त्व' पुस्तक में, अशुभयोग और कषाय से उत्पन्न आस्रव से कर्मबंध होने का विवेचन 'बंध तत्त्व' पुस्तक में, पर पदार्थ के संयोगजनित ममता का संबंध-विच्छेद कर कर्म-क्षय करने का विवेचन 'निर्जरा तत्त्व' पुस्तक में तथा पूर्ण निर्दोष, निष्कलंक, निश्चिन्त, निर्भय, स्वाधीन व परमसुख पाने का विवेचन एवं मार्गदर्शन 'मोक्ष-तत्त्व' पुस्तक में किया गया है। जैनाचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के सान्निध्य में लिखित 'जैन तत्त्व प्रश्नोत्तरी' पुस्तक में भी नवतत्त्व का वर्णन है। मोक्ष-मार्ग की प्राप्ति के लिए योग-साधना के रूप में लेखक ने जैन धर्म में ध्यान, कायोत्सर्ग, वीतरागयोग, ध्यान शतक का अनुवाद, वीतराग ध्यान की प्रक्रिया, विपश्यना एवं पातंजल योगसूत्र अभिनव निरूपण पुस्तकें भी लिखी हैं तथा दु:ख रहित सुख, सकारात्मक अहिंसा, जैन धर्म, जीवन धर्म पुस्तकों का लक्ष्य भी मोक्षप्राप्ति करना रहा है। इन सबमें श्रुतज्ञान (तत्त्वज्ञान) का ही विवेचन है। ___पूर्वोक्त सब पुस्तकें मैंने श्री देवेन्द्रराजजी मेहता की महती कृपा एवं प्रेरणा से लिखी हैं। आपने इन पर प्रमोद व्यक्त करते हुए नवतत्त्व के सार रूप में 'नवतत्त्व जैनतत्त्व सार [ VII ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 294