Book Title: Jain Tattva Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 8
________________ [६] नहीं है। इसलिये काल द्रव्य कल्पित याने (औपचारिक) द्रव्य है । अतद्भाव में तद्भाव ( अन्य में अन्यज्ञान ) उपचार कहलाता है । इसके स्कन्धादि भेद नहीं हैं। ___ इन पूर्वोक्त पइ द्रव्यों की व्याख्या को द्रव्यानुयोग कहते हैं । जिसका विस्तार सन्मतिनक, रत्नाकरावतारिका, प्रमाणमीमांसा, अनेकान्तजयपताका वगैरह ग्रन्थों में और भगवत्यादि मूत्रों में किया हुआ है। उनके देखने से स्पष्ट मालूम होगा। ___ (२ ) चरणकरणानुयोग; जिसमें चारित्र धर्म की व्याख्या अतिसूक्ष्म रीति से की है। उसे आगे चलकर दो प्रकार के धर्म के प्रकरण में कहेंगे । इसका विस्तार आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग वगैरह में किया हुआ है। (३) गणितानुयोग का अर्थ गणित की व्याख्या है जो लोक में असङ्ख्य द्वीप और समुद्र हैं, उनकी रीति भाँति और उनके प्रमाण वगैरह का अच्छी रीति से इसमें वर्णन है । इस विषय को सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, लोकप्रकाश, क्षेत्रसमास, त्रैलोक्यदीपिका वगैरह ग्रन्थों से जिज्ञासु पुरुष देखले । . (४) धर्मकथानुयोग में भूतपूर्व महापुरुषों के चरित्र हैं । जिनके मनन करने से जीव, अत्यन्त उच्च श्रेणी पर पहुँच सकता है । वे चरित्र ज्ञाताधर्मकथा, वसुदेवहिण्डी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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