Book Title: Jain Tattva Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 15
________________ [ १३ ) केवलज्ञान को सकल कहते हैं। परोक्ष ज्ञान में पांच भेद माने जाते हैं । १ प्रत्यभिज्ञान, २ स्मरण, ३ तर्क, ४ अनुमान, ५ आगम । इसमें प्रत्यभिज्ञान, स्मरण, तर्क इन तीनों को कोई २ प्रमाण में दाखिल नहीं करते लेकिन हमारे जैनशास्त्रकारों ने इसपर प्रबल युक्ति दिखाकर अति उत्तम रीति से विवेचना की है। किन्तु यहाँ समय के अति संकुचित होने से हम उसे कह नहीं सकते। उपमान प्रमाण का अन्तर्भाव, प्रत्यभिज्ञान में किया . गया है। नय वह पदार्थ है, जिसका संक्षिप्त लक्षण हम ऊपर कह 'चुके हैं; उसका शास्त्रकारों ने इसरीति से लक्षण किया है: 'नीयते येन श्रुताख्यप्रमाणविषयीकृतस्यार्थस्यांशः तदितरांशोदासीन्यतः स प्रतिपत्तुरभिप्रायविशेषो नयः' रूप द्रव्य के पर्यायों को प्रत्यक्ष करनेवाले ज्ञान को मनःपर्यय ज्ञान कहते हैं। भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल में होनेवाले तीनों लोक के पदार्थों का प्रत्यक्ष करनेवाला ज्ञान, केवलज्ञान कहा जाना है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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