Book Title: Jain Tattva Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 50
________________ [ ४८ ] आप ही प्रथम विद्वान् हैं। अन्य विद्वानों को भी इस और प्रगति शील होना चाहिये । (४) अशोकना शिलालेखो उपर दृष्टिपात - कुछ समय हुआ भावनगर के 'जैन' पत्र की सिलवर जुबली विशेषांक में डा० त्रिभुवनदास शाह का एक लेख अशोक के विषय में प्रगट हुआ था, जिस में उन्हों ने अशोक के धर्म लेखों को जैन सम्राट् सम्प्रति का बताया था । प्रस्तुत पुस्तक में उपरोक्त सूरिजी म० ने उनके लेख का खण्डन किया है और सिद्ध कर दिया है कि वे लेख सम्प्रति के नहीं हैं । आपकी शैली गूढ, निष्पक्ष और गवेषणात्मक है । पृ० सं० ६६ मू० ।) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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