Book Title: Jain Tattva Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 49
________________ वीर अपने २२ अगस्त सन् १९३६ के अंक में क्या कहता है। श्रीयशोविजय जैन ग्रंथमाला, भावनगर की चार गुजराती पुस्तकें: याति का सामना का (१) जैन धर्मनुं उत्कृष्ट स्वरूप-पृष्ठ ३६ सुन्दर छपाई । श्वेताम्बराचार्य श्रीविजयधर्मसूरीश्वर और पाश्चात्य विद्वान् प्रो. जैकोबी का पत्र व्यवहार जैन तत्वों और अहिंसा के विषय में हुआ था । वही इस पुस्तक में प्रगट किया गया है। धार्मिक विचारवाले लोगों को इसे अवश्य पढ़ना चाहिये । -)। के टिकट भेजने से मुफ्त मिलती है। (२) जगत् अने जैन दर्शन-इस ६४ पृष्ठों की सुंदर पुस्तिका में श्रीमान् विजयेन्द्रसूरिजी के जैनधर्म विषयक उन भाषणों का संग्रह किया गया है जो उन्हों ने विभिन्न सभाओं में दिये थे । धर्म प्रचार के लिये पुस्तक उपयोगी है। (३) श्री वीर विहार मीमांसा-इस पुस्तिका के लेखक भी श्री विजयेन्द्रसूरिजी हैं । कुल १८ पृष्टों में आपने भ० महावीर की छद्मस्थावस्था में किये गये विहार पर गवेषणा पूर्ण विचार किया है। आपने सिद्ध किया है कि भ० महावीर राजपूताना और गुजरात में नहीं आये थे । इस दिशा में विचार करने वाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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