Book Title: Jain Tattva Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 36
________________ । ३४ ] नाम लिखा । लेश्या के कारण, बन्ध जुदे २ प्रकार के होते हैं । इसी कारण से जगत् में विचित्र प्रकार के जीव दिखलाई पड़ते हैं। अत एव अध्यवसाय की शुद्धि के लिये वीतराग का पूजन अत्यावश्यक है। जैनमत में रागद्वेषवाले को ईश्वर नहीं मानते । जगदादिरूप कार्य की उत्पत्ति में अवान्तर प्रलय माननेवाले नैयायिक तीन कारण मानते हैं । १ समवायी जैसे परमाणु, २ असमवायी जैसे व्यणुकादिसंयोग और तीसरा अतिरौद्रः सदा क्रोधी मत्सरी धर्मवर्जितः । निर्दयो वैरसंयुक्तः कृष्णलेश्याऽधिको नरः ॥ १ ॥ अलसो मन्दबुद्धिश्च स्त्रीलुब्धः परवश्वकः । कातरश्च सदा मानी नीललेइयाऽधिको भवेत् ॥२॥ शोकाकुलः सदा रुष्टः परनिन्दाऽऽत्मशंसकः । संग्रामे प्रार्थते मृत्यु कापोतक उदाहृतः ॥३॥ विद्यावान् करुणायुक्तः कार्याकार्यविचारकः । लाभालाभे सदा प्रीतः पीतलेश्याऽधिको नरः ॥४॥ क्षमावांश्च सदा त्यागी देवार्चनरतोद्यमी । शुचिर्भूतसदानन्दः पद्मलेश्याऽधिको भवेत् रागद्वेषविनिर्मुक्तः शोकनिन्दाविवर्जितः । परमात्मत्वसंपन्नः शुखलेश्यो भवेन्नरः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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