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दो शब्द श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह' का तीसरा भाग पाठकों के सामने प्रस्तुत है । इसमें मा. नवें और दसवें बोलों का संग्रह है। साधसमाचारी से सम्बन्ध रखने वाली अधिक बातें इसी में हैं । पाठकों की विशेष सुविधा के लिए इसमें विषयानुक्रम सूची भी पूरी दे दी गई है।
पुस्तक की शुद्धि का पूरा ध्यान रखने पर भी दृष्टि दोष से कहीं कहीं अशुद्धियाँ रह गई हैं। उनके लिये शुद्धिपत्र अलग दिया हैं । जो अशुद्धियाँ उद्त प्रमाण ग्रन्थों में हैं, उन्हें शुद्ध करके विषयानुक्रम सूची में भी दे दिया गया है। आशा है, पाठक उन्हें सुधार कर पढ़ेंगे। इनके सिवाय भी कोई अशुद्धि छूट गई हो तो पाठक महोदय उसे सुधार लेने के साथ साथ हमें भी सूचित करने की कृपा करें,जिससे अगले संस्करण में सुधार ली जाँय । इस के लिए हम उनके भाभारी होंगे। ___कागजों की कीमत बहुत बड़ गई है । छपाई का दूसरा सामान भी बहुत मँहगा हो रहा है इसलिए इसबार पुस्तक की कीमत २) रखनी पड़ी है। यह भी कागज और छपाई में होने वाले असली खर्च से बहुत कम है ।
चौथे भाग की पाण्डुलिपि तैयार है । ग्यारहवें से चौदहवें बोल तक उसके पूरा हो जाने की संभावना है। पाँचवाँ भाग लिखा जा रहा है। वे भी यथा सम्भव शीघ्र पाठकों के सामने उपस्थित किये जायगें। मागशीर्ष शुक्ला पंचमी संवत् १६१८
पुस्तक प्रकाशन समिति ऊन प्रेस, बीकानेर
आभार प्रदर्शन
जैन धर्म दिवाकर पंडितप्रवर उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराज ने पुस्तक का आद्योपान्त अवलोकन करके प्रावश्यक संशोधन किया है। परमप्रतापी पूज्य श्री हुक्मी चन्दजी महाराज के पट्टधर पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज के सुशिष्य मुनि श्री पन्ना लालजी महाराज ने भी देशनोक चतुर्मोस में तथा बीकानेर में पूरा समय देकर परिश्रमपूर्वक पुस्तक का ध्यान से निरीक्षण किया है । बहुत से नए बोल तथा कई बोलों के लिए सूत्रों के प्रमाण भी उपरोक्त मुनिवरों की कृपा से प्राप्त हुए हैं। इसके लिए उपरोक्त मुनिवरों ने जो परिधाम उठाया है, अपना अमूल्य समय तथा सत्परामर्श दिया है उसको कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके उपकार के लिए हम सदा ऋणी रहेंगे।