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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
छठा बोल संग्रह
( बोल नम्बर ४२४-४६७ तक)
द्रव्य छह ___४२४ "गुणपर्यायवद्र्व्यम्" अर्थात् गुण और पर्यायों के
आधार को द्रव्य कहते हैं। अथवा द्रवति तांस्तान् पर्यायान् गच्छति, इति द्रव्यम्, अर्थात् जो उत्तरोत्तर पर्यायों को प्राप्त हो वह द्रव्य है। द्रव्य छह हैं:(१) धर्म द्रव्य-जो पुद्गल और जीवों की गति में सहायक हो, उसे धर्म द्रव्य कहते हैं। (२) अधर्म द्रव्य–जो जीव और पुद्गलों की स्थिति में सहायक हो, उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं। (३) आकाश द्रव्य-जीव और पुद्गलों को स्थान देने वाला द्रव्य आकाश द्रव्य है । (४) काल द्रव्य-जो जीव और पुद्गलों में अपरापर पर्याय की प्राप्ति रूप परिणमन करता रहता है, उसे काल द्रव्य कहते हैं। (५) जीव द्रव्य-जिस में ज्ञान दर्शन रूप उपयोग हो उसे जीव द्रव्य कहते हैं। (६) पुद्गल द्रव्य-जो रूप, रस,गन्ध और स्पर्श से युक्त हो उसे पुद्गल द्रव्य कहते हैं।