Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 08 Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal View full book textPage 9
________________ ( vui ) - प्र० ५४ - ऐसे भी है और ऐसे भी इस पर प्रश्न बनाओ ? प्र० ५५ - ऐसे भी है और ऐसे भी इसका उत्तर दो ? प्र० ५६ - समयसार आठवी गाथा के अनुसार प्रश्न वनाओ ? प्र० ५७-आठवी गाथा के अनुसार उत्तर दो ? प्र० ५८ - व्यवहार के बिना निश्चय का उपदेश कैसे नही होता है। प्र० ५६-५८ प्रश्न का उत्तर दो प्रश्न न० २५२ के अनुसार दो । प्र० ६० - व्यहारनय को कैसे अगीकार नही करना प्रश्न बताओ ? प्र० ६१- प्रश्न ६० का प्रश्न २५२ के अनुसार उत्तर दो ? प्र० ६२ - व्यवहारनय के कथन को सच्चा मानने वालो को किस-किस नाम से सम्बोधन किया है प्र ० ६३ - शरीर के सम्बन्ध से जीव की पहिचान क्यों कराई ? प्र० ६४ - जीव के सम्बन्ध से शरीर को जीव कहा- ऐसे व्यवहार को कैसे अगीकार नही करना ? प्र० ६५ - ज्ञान - दर्शन भेदो से जीव की पहिचान क्यो कराई ? प्र० ६६-ज्ञान- दर्शन भेदरूप व्यवहार का कैसे अगीकार न करना' प्र० ६७ - व्यवहार मोक्षमार्ग से निश्चय मोक्षमार्ग की पहिचान क्यो कराई ? प्र० ६८ - व्यवहार मोक्षगार्ग को कैसे अगीकार न करना ? दूसरी तरह से प्र० ६६- शरीर के सम्बन्ध से जीव की पहिचान क्यों कराई ? प्र० ७० - ज्ञानदर्शन भेद द्वारा जीव की पहिचान क्यो कराई ? प्र० ७१ - अस्थिरता सम्बन्धी शुभभावो से मुनिपने की पहिचान क्यो कराई ? प्र० ७२ - शरीर के सयोग बिना निश्चय आत्मा का उपदेश कैसे नही होता है ? प्र० ७३ - व्यवहारनय को कैसे अगीकार नही करना ? प्र० ७४ -- भेदरूप व्यवहार के बिना अभेद रूप निश्चय का उपदेश कैसे नही होता है ?Page Navigation
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