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( x11 ) (३५) स्यादवाद सहित अनेकान्त को दर्शानेवाला ही सच्चा शास्त्र है।
(३६) शक्ति की अपेक्षा सब आत्मा समान है। (३७) एक गुण मे अनन्त गुणो का रूप है। (३८) मेरे मे अनन्त सिद्ध दशा विराजमान है। (३६) मै सिद्ध दशा का नाथ हूँ । (४०) एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को स्पर्श नहीं करता है । (४१) पर्याय क्रमबद्ध क्रम नियमित ही होती है। (४२) बीतराग-विज्ञानता उत्तम वस्तु है। (४३) पर्याय द्रव्य के सन्मुख होवे वे धर्म है। (४४) मै परम पारिणामिकभाव हूँ। (४५) धर्मी की दृष्टि सदा ध्रुव निज द्रव्य पर ही रहती है। (४६) आत्मा प्रमत्त-अप्रमत्त भी नही होता। (४७) सम्यग्दर्शन शुद्धोपयोग दशा मे प्रगट होता है । (४८) सम्यग्दर्शन के साथ स्वरूपाचरण चरित्र नियम से होता
है
(४६) शुद्धोपयोग ही वीतराग-विज्ञानता है। (५०) वीतराग-विज्ञानता का एक नाम शुद्धोपयोग है। (५१) शुद्धोपयोग कहो रत्नत्रय कहो एक ही बात है।
(५२) सारा विश्व काम-भोग की कथा मे लीन है। सत्य बात सुहाती ही नहीं है।