Book Title: Jain Shiksha Digdarshan Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 7
________________ 1 (५) + पूर्वोक्त बातों से केवल महादेव का स्वरूपही ज्ञात: होता है; लेकिन किस व्यक्ति को महादेव कहना चाहिए, यह नहीं बतलाया गया है । परन्तु गुणगण से भूषित, और दोषों से रहित ही को महादेव माना है । इसलिए. पूर्वोक्त कथनों से जैनदर्शन में अर्हन् देव ही को महादेव मानते हैं । अन् देव कदापि अवतार नहीं धारण करते और दुनिया के फन्द में हाथ भी नहीं डालते; केवल केवलज्ञान से भाषावर्गणा के पुद्गलों के क्षय करने के लिये गम्भीरता पूर्वक देशना ( उपदेश ) देते हैं । जगज्जन्तु को मोक्षमार्ग के दर्शक होने से सर्वनी तिरचयिता वह' माने जाते हैं । यद्यपि नीति तथा धर्म अनादिकाल के हैं तथापि समय समय पर उनकी शिथिलता होने पर अपने केवलज्ञान के समय लोगों को उपदेश द्वारारा नीति तथा धर्म का उपदेश देते हैं इसलिए ही वे सर्वनीतिरचयिता उपचार से कहे जाते हैं । जैनदर्शन में अर्द्दन् देव को जगत् का फर्ता नहीं माना है किन्तु जगत् अनादिकाल से ऐसा ही बरावर चला आता है; क्योंकि अर्हन् देव को जगत् का कर्ता मानने में जैनदर्शनकारों ने अनेक दूषण दिखाए हैंपहिले तो ईश्वर में पूर्वोक्त प्रकार से राग-द्वेष और मोह ही जब नहीं है तब उसमें इच्छा हो ही नहीं, सकती; क्योंकि इच्छा रागाधीन है और विना इच्छा. के रचना नहीं हो सकती । दूसरी यह बात है कि ईश्वर में जन्यजनकभाव संबन्ध भी नहीं घट सकता. क्योंकि जनक के तुल्य ही जन्य होना चाहिए औरPage Navigation
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