Book Title: Jain Shiksha Digdarshan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ ( १० ) यानी मेल है उसमें यदि मिलकर काम किया जाय और जिसमें भिन्नता है उसका बारीक दृष्टि से विचार. किया जाय तो विशेष लाभ होने का संभव है 1 अर्हन् देव का विशेष स्वरूप नीचे नोट में दिया. गया है पाठकलोग उसे देखकरके सन्तुष्ट हों । सर्वज्ञ और वीतराग होने से अर्हन् देव में मिथ्याभाषण करने का संभव ही नहीं है; क्योंकि भय, असर्व / * सर्वज्ञो जितरागादिदोषस्त्रैलोक्य पूजितः । यथास्थितार्थवादी च देवोऽर्हन् परमेश्वरः ॥ ४ ॥ ( योगशः द्वितीयप्रकाश ) अकार आदिधर्मस्य आदिमोक्षप्रदेशकः । स्वरूपे परमं ज्ञानमकारस्तेन उच्यते ॥ ४० ॥ रूपिद्रव्यस्वरूपं वा दृष्ट्वा ज्ञानेन चक्षुषा । दृष्टं लोकमलोकं वा रकारस्तेन उच्यते ॥ ४१ ॥ हता रागाच द्वेषाश्च हता मोहपरीषहाः । हतानि येन कर्माणि हकारस्तेन उच्यते ॥ ४२ ॥ सन्तोषेणाभिसंपूर्णः प्रातिहार्याष्टकेन च । ज्ञात्वा पुण्यं च पापं च नकारस्तेन उच्यते ॥४३॥ अथवा अकारेण भवेद् विष्णू रेफे ब्रह्मा व्यवस्थितः । इकारेण हरः प्रोक्तस्तस्यान्ते परमं पदम् ॥ ३९ ॥ ( हेमचन्द्राचार्यविरचित महादेवस्तोत्र ) : पर्वभूताय शान्ताय कृतकृत्याय धीमते । महादेवाय सततं सम्यग् भक्त्या नमो नमः ॥८॥ ( हरिभद्रसूरि )

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