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- शुभाशुभ फल कैसे प्राप्त होता है ? । हो सकता है कि वीतराग के भक्त द्वेषवाले होने से पूजकपर प्रसन्न और निन्दकपर अप्रसन्न होते हैं; इसलिये वे देवता वीतराग की से जो फल देते हैं वह वीतराग से हो यदि आरोप से ऐसा मान लें तो उसमें नहीं है।
पूजा के निमित्त प्राप्त होता है, कुछ भी हानि
वह भी इस तरह देवतालोक राग
अर्हन्त देव में राग, द्वेष, अज्ञान, मिथ्यात्व, दानान्तराय, लाभान्तराय, वीर्यान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, काम, निद्रा और अविरतिरूप अठारह दूषणों का अभाव है ।
यद्यपि राग, द्वेष, मिथ्यात्व और अज्ञान रूप चार 'ही दूषणों के नाश होने पर प्रायः सभी दूषण नष्ट होजाते हैं, किन्तु बालकों को सरल रूप से ईश्वरसंवन्धी - ज्ञान कराने के लिए विशेष विस्तार किया गया है । और कार्यरूप दानान्तरायादि चौदह दूषणों के दृष्टिगोचर होने से रागद्वेषादि चार कारणरूप दोषों का अनुमान किया जा सकता है; क्योंकि कार्य से ही कारणका अनुमान किया जाता है । जैसे कोठरी के भीतर बैठा 'हुआ पुरुष वृष्टि के देखने से आकाशस्थ मेघ का अनुमान कर लेता है ।
अन्तराया दानलाभवीर्य भोगोपभोगगाः
हासो रत्यरती भीतिर्जुगुप्सा शोक एव च ॥७२॥ कामो मिथ्यात्वमज्ञानं निद्रा चाविरतिस्तथा । रागो द्वेषश्च नो दोषास्तेषामष्टादशाप्यमी ॥७३॥ ( हमकोश, देवाधिदेवकाण्ड, पृ० २३ )