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आदर्श-साधु ।। संसारमें साधु नामधारी हजारों ही नहीं बल्के लाखो मनुष्य हैं । परन्तु साधु किसे कहना चाहिये ? साधुओंमें कसे गुण होने चाहिये ? संसारकी समस्त उपाधियोंसे मुक्त होकर साधुताके स्वीकार करनेसे उनको कैसे कैसे कठिन कर्तव्य पालने पड़ते हैं, इन सभी बातोंका ज्ञान इस पुस्तकसे स्पष्टतया होता ह । भारतवर्ष में ही नहीं; परन्तु पाश्चात्यदेशोंमें भी सुप्रसिद्धि पानेवाले स्वनामधन्य शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्री विजयधर्मसूरिजीके नामसे कौन अज्ञात है ? आपहीके जीवनवृत्तान्तसे युक्त यह पुस्तक है । भाचार्यश्रीने साधारण स्थितिसे अपने जीवनका प्रारंभ करके क्रमशः कैसे कैसे बड़े महत्त्वके कार्य संसारके रंगमंडपमें कर दिखलाये मैं, उनका इस पुस्तकमें बड़ी योग्यताके साथ वर्णन किया गया है । इसके लेखक मुनिराज विधाविजयजीने प्रसंग प्रसंग पर एक एक बातका ऐसा अच्छा स्पष्टीकरण और भिन्न भिन्न विषयोंपर ऐसी उत्तम आलोचनाएं की हैं, जो प्रत्येक मनुष्यके पढ़ने योग्य हैं । एक और वातकी भी इसमें विशेषता है-आचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजीके उपदेशसे बड़े बड़े महत्त्वके कार्य करनेवाले महाराजा काशीनरेश, महाराणाजी साहेव श्रीउदयपुर, सर. इ० जी. काल्लिन-एजंट टू धी गवर्नर जनरल वगैरहके एवं आपसे घनिष्ठ संबन्ध रखनेवाले यूरोपीयन विद्वानों के फोटू भी दिये गये हैं। कपड़े की पको जिल्द होनेपर भी दाम सिर्फ-१-४-०
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श्रीयशोविजयजैनग्रंथमाला.
हेरीसरोड, भावनगर । server Servers NSR Sune