Book Title: Jain Shiksha Digdarshan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 26
________________ ( २४ ) विचार कर सकते हैं । इसीलिये आजकल साधुका नाम सुनते ही नवयुवक लोग मूह मोड़लेते हैं; तथा कितने ही लोग साधुओं को दुनियां में दारिद्र्य बढ़ानेका कारण समझते हैं। लेकिन महाकवियों ने दुनियां के आधारभूत तीन महा पुरुषों में साधु को गिना है; वल्कि अन्य पुरुषों को अपनी माता के यौवन नाश करने में कुठार ही माना है । क्योंकि किसी कवि ने कहा है कि " जननी ! जण, तो भक्त जण, काँ दाता का शूर । नहि तो रहिजे वांझणी मत गवावे नूर " !! देखिये ! इन तीनों में भी भक्तपुरुष को ही पहिले स्थान दिया है । इस विषय में शास्त्रकार भी संमत हैं, क्योंकि महावीरदेव, महचलीगोशाल, पुराणकाश्यप, अजित केशकम्बल, ककुदूकात्यायन, संजयवेलाष्ठपुत्र, चिलातीपुत्र, कपिल, युद्ध, पतञ्जलि और भर्तृहरि वगैरह संसार के त्याग करने से ही महात्मा हुए हैं, इसलिये पहिले त्याग को श्रेष्ठता बतलाई गई है और त्याग भी धीर लोगों का ही अलकार है । अक्रोधो गुरुशुश्रूषा शौचमाहारलाघवम् । अप्रमादश्च पञ्चते नियमाः परिकीर्तिताः ॥ ५ ॥ वौद्वैः कुशलधर्माश्च दशेष्यन्ते यदुच्यते । हिंसास्तेयान्यथाकामं पैशुन्यं परुषानृतम् ॥ ६ ॥ संभिन्नालापव्यापादमभिध्या दृविपर्ययम् । पापकर्मेति दशधा कायवाइमानसैस्त्यजेत् ॥ ७ ॥ ब्रह्मादिपदवाच्यानि तान्याहुर्वेदिकादयः । अतः सर्वैकवाक्यत्वाद् धर्मशास्त्रमदोऽर्थकम् ॥ ८ ॥

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