Book Title: Jain Shiksha Digdarshan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ झता और सराग के कारण से ही मिथ्याभाषण होता . है। इसीलिए अर्हन् देव में उनबातों का अभाव होने से उनका उपदेश सफल और सतत्त्व है, यह धर्माधिकार में स्पष्ट किया जायगा। यहां पर यह शङ्का होने का संभवः है कि अर्हन देव सर्वज्ञ हैं इसमें क्या प्रमाण है ? | इस: पर अन्य प्रमाण देने के पहिले हम यही प्रमाण देते हैं कि उनके कहे हुए परोक्ष पदार्थ के जानने के लिये यद्यपि पूर्व समय में सूक्ष्मदर्शकादि यन्त्रों का आविर्भाव नहीं था; किन्तु आजकल पदार्थ विज्ञानवादी लोग जो नए नए आविर्भूत यन्त्रों के द्वारा-जल, वनस्पति, पृथ्वी, फलादि में जीव प्रत्यक्ष कर रहे हैं; और बहुत लोगों ने परलोक, जन्म, मरण, जीवत्व विभागादि जो अब सिद्ध किया है, वह हमारे अर्हन देव ने केवल ज्ञान के बल से पहिले ही कह दिया था । यदि कोई यह शङ्का करे कि-उनका सर्वथा वीतराग होना कथन मात्र ही है, क्योंकि वास्तविक में कैसे घट सकता है ? । इसका उत्तर यही है कि जैसे अपने लोगों में राग द्वेष का तारतम्य* ( कमीबेशी) दिखाई देता है वैसे ही किसी व्यक्ति विशेष में रागद्वेष का सर्वथा अभाव होना भी . संभव है; इस तरह सर्वथा वीतराग मानने में कुछ भी बाधा नहीं दिखाई देती । जिस पदार्थ का एक देश * श्रीहरिभद्रसूरिकृत अष्टक की टीका में श्रीजिनेश्वरसूरि में लिखा है कि दृष्टो रागाद्यसभावः क्वचिदर्थे यथाऽऽत्मनः ।। . तथा सर्वत्र कस्यापि तदूभावे नास्ति बाधकम् ॥१॥

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