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विभ-विशेषां] કાલકાચાર્ય ઔર વિક્રમ
[२०१ ई. स. ४०५ के मंदसौरके शिलालेखमें विक्रमसंवत्का मालवसंवत्के नामसे उल्लेख मिलता है। मालवगणमें प्रचलन होनेसे वह संवत् 'मालवगणाऽम्नात' कहलाता था। इससे यह स्पष्ट सिद्ध है कि ई. सन पूर्व ५७ में इस संवत्का कोई प्रचारक राजा था, जिसने जैन
और हिंदू संस्कृतिके अनुसार, शकोंको परास्त किया था। जिन शकोंका विक्रमादित्यसे मालवामें युद्ध हुआ था उनके राजाओंने शाही और शहानुसाही विरुद धारण कर रखा था, इस बातका समर्थन शक राजाओंके सिक्कों पर उत्कीर्ण उपाधियोंसे पूरी तरह होता है ।" .
श्री जयचंद्र विद्यालंकारकृत भारतीय इतिहासकी रूपरेखा भा. २ पृ. ७८६-८७ में लिखा है-" यह प्रसिद्ध है कि राजा विक्रमादित्यने विक्रमसंवत् चलाया। किन्तु उस संवत्को विक्रमसंवत् पहले पहल ८९८ वि. के एक अभिलेखमें कहा गया है; उससे पहले वह सदा मालवोंका संवत् या मालवगणका संवत् कहलाता था।xxx इससे यह प्रतीत होता है कि वह संवत् मालवगणके ठहराव या विधानसे-बाकायदा व्यवस्था करनेसे-चला था। शकोंको हरा भगानेमें गौतमीपुत्रके साथ साथ मालवोंका भी हिस्सा रहा प्रतीत होता है। पहली शताब्दी ई. पू.के मालवगणके सिक्कों पर 'मालवानां जयः' और 'मालवगणस्य जयः' की छाप रहती है । वे सिके स्पष्टतः किसी बडे विजयके उपलक्ष्यमें चलाये गये थे। और वह विजय ५७ ई. पू. के विजयके सिवाय और कौनसा हो सकता था ? इसी युगको एक जैन श्राविका अपने अभिलेखमें जिन शब्दोंसे अपना और अपने दानका परिचय देती है वे मनोरंजक हैं-" अरहत वर्धमानको नमस्कार । गोतिके पुत्र पोठ्य-शकोंके काल व्याल.... ....(की भार्या) कौशिकी शिवमित्राने आयागपट प्रतिष्ठापित किया ।
टोलमी ( Ptolemy) भी लिखता है कि-शकोंने उज्जैनके राजा गर्दभिल्लको जो विक्रमादित्यका पिता था पराजित किया। किन्तु उज्जैन पर शकोंका अधिकार सिर्फ चार वर्ष तक रहा, जहाँ विक्रमादित्यने उन्हें नष्टभ्रष्ट कर दिया। तत्पश्चात् उसने ई. स. पूर्व ५७ में विक्रमसंवत् स्थापित किया।
महामहोपाध्याय श्री हरप्रसाद शास्त्रीने सातवाहन राजा हाल, (जिसका समय ईसाको दूसरी शताब्दी माना जाता है ) के बनाये हुए 'गाथासप्तशती 'की ५ वी गाथामें विक्रमका नाम-उल्लेख बताया है इससे स्पष्ट है कि विक्रम कोई राजा अवश्य हुआ था।
उपर्युक दिये गये प्रमाणों एवं कालकाचार्यकी गर्दभिल्लोच्छेदक वाली कथासे यह स्पष्ट प्रमाणित हो जाता है कि ई. पू. ५७ में विक्रमादित्य नामक एक राजा हुआ था जिसने विक्रम संवत्सर चलाया । पुरातत्वविद् काशीप्रसाद जायसवाल, इतिहासवेत्ता ओझाजी, महामहोपाध्याय
५. गंगाप्रसाद महेता M. A. के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य फुटनोटसे ६ एपिप्राफिया इंडिका १, पृ. ३९३ ७ , , १२, पृ. ३२०
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