Book Title: Jain Satyaprakash 1940 09 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीसमाधिकुलकम् ॥ कर्ता - आचार्य महाराज श्रीविजयपद्मसूरिजी ( आर्यावृत्तम् ) सिरसिद्धचक्कraणं, किच्चा सिरिणेमिसूरिचरणकथं ॥ भव्याणं से, समाहिकुलगं रपमि मुया ॥१॥ दुहरिए संसारे, णत्थि सुहं सुक्खहेउवइरेगा || तहवि सुहं मोहाओ, भासइ भवभाविजीआणं ||२|| कडुओ णिवो कीडो, तत्थ डिओ मण्णप सुसाउति ॥ freein संसारो, कीडनिहो भवठिओ जीवो ॥३॥ आहिव्वाहिविसिट्ठी, कुटुंबचिंतग्गिताव संतत्तो ॥ अगणिय मरणकिलेसो, णो पावइ संतिले संपि ॥४॥ जीवो अणाइणिहणो, भवो तहा दुक्खरूवदुक्खफले ॥ दुखाणुबंध भावो, तविच्छित्ती सुधम्माओ ||२५|| असुहाणं कम्माणं, विलया संपायणं सुहम्मस्स ॥ होज्ज विणासो तेसिं, तहभव्वत्ताइजोगाओ ||६|| सुकाणुमोयणाए, चउसरणगमणकयाहगरिहाहिं || संपज्जइ सो जोगी, समाहिमरणं पिं तेणेव ||७|| जिणसासणम्मि जे जे, सुहजोगा जिणवरेहिं पण्णता ॥ ते णे परंपराए, समाहिमरणं पि दिज्ज सुहं ||८|| नियतत्तं बहुगूढं, गुरूण पासम्मि विजयजोगेहिं ॥ जाणिज्ज वियारिज्जा, गुणभरणं दोसपरिचायं ॥ ९ ॥ कुज्जा परमुल्लासा, सत्तिय संसाहणा णरभवम्मि || विसयकसायपसत्ति. हेया दुहयत्ति धारिता ||१०|| संसारम्मि विसारे, लहंति सिद्धिं न जे परिभमंते ॥ ते तेसिं पावाओ, इय तच्चापण मुत्तिसुहं ॥ ११ ॥ fafar दुक्खेहिं, पीडिज्जते विसयसंगदो सेहिं ॥ दुक्खविवागविवागं पर्यसिया भूरिदिता ॥ १२ ॥ दीसह विसविसयाणं, वण्णाहिकं ति णञ्जए तेणं ॥ उबभुक्तं हणइ विसं, विसया विहणंति सरणावि ||१३|| उपपत्ती चिंताए. विसयाणं चिंतणं णिरोहिज्जा ॥ सुक्खं परिवापणं, भोगेहिं किं हविज्ज कया ||१४|| gees किं कट्ठेहिं. अग्गी तह सायरो जलभरेहिं ॥ पवमलभोगेहिं, बहुदुहया भोगतण्हा वि || १५ || For Private And Personal Use Only ( अपूर्ण )Page Navigation
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