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पंजाब में जैनधर्म [ कितनेक ऐतिहासिक उल्लेख का संग्रह ]
लेखकः-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी प्रारंभः-यद्यपि पंजाबमें भगवान् ऋषभदेव भगवानसे हि जैनधर्मकी नींव गडी है, और उन्ही के पुत्र बाहुबलिजी पंजाब के अधिपति थे किन्तु पाश्चात्य विद्वान, आर्यावर्त का प्राचीन इतिहास सिलसिलेवार न मिलने के कारण, भगवान महावीर स्वामी और महात्मा गौतम बुद्ध से ऐतिहासिक युगका प्रारम्भ मानते हैं। अतः मैं भी यहां उस समयसे प्रारम्भ कर आजतक पंजाब में जैनधर्म की जो स्थिति हुई है उसके कतिपय प्रमाण यहां लिखता हूं ।
श्रमण भगवान महावीर स्वामी-(वि. सं. पूर्व ५०० से ४७० तक) सिन्धु-सौवोरके वीतभय (भेरा ) नगर में ३६३ नगर के अधिपति उदायी राजा का राज्य था। महाराज उदायी, अपनी साम्राज्ञी व परमार्हत चेडा महाराज की पुत्री प्रभावती के दीक्षा लेने के पश्चात् , श्रद्धालु जैन बना था। उदायी राजा ने, भ० महावीरस्वामी की गृहस्थावस्था की प्रतिमाको
और स्वर्णगुलिका दासीका अपहरण करनेवाले चंडप्रथोतसे युद्ध खेल कर विजय प्राप्त किया, मालवदेशमें मंदसौर शहेर बसाया और अन्तमें राज्य-पाटका परित्याग करके भगवान महावीरके पास दीक्षा ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त किया। अतः ये उदायी मुनि महावीर स्वामीके समयके पंजाबके जैन राजा एवं राजर्षि थे। और मोक्षगामी राजर्षियोंमें ये अन्तिम राजर्षि है।
(देखो-आवश्यक नियुक्तिवृत्ति, त्रिशष्टिशलाका पुरुषचरित्र पर्व १०, पर्युषण पर्व अष्टाह्निका व्याख्यान ) ___ आ० आर्यसुहस्तिसूरि-(वि० सं० पूर्व २२६ से १८० )-आपके शासनकालमें तक्षशिला, कि जिसके खण्डहर रावलपिण्डी से उत्तरमें २० मील पर दृश्यमान है, वहां कुणालका स्तूप बना है जो आज जैन स्तुपके रूपमें विद्यमान है, सम्भव है इसे सम्राट् संप्रतिने बनवाया हो। . अशोक का उत्तराधिकारी संप्रति यह इतिहासका पहल पहिला ही सम्राट् है कि जिसने आ० सुहस्तिसूरि के उपासक बनकर जैन श्रमणोंका विहार और जैन मन्दिरों के निर्माणसे जैनधर्मकी सीमा बढ़ा दी थी।
१ श्रीमान् बाबूरामजी जैन B. A., LL B जीरावाले व श्रीमान् मगन्नाथजी नाहर AL. S.. इन दोनों महानुभावों की प्रेरणा इस लेख में निमितरूप है।
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