Book Title: Jain Satyaprakash 1940 01 02 SrNo 54 55
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१८] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [વર્ષ ૫ % 3D इसके राज्यकालमें उत्तरमें चोन, तुर्कस्तान व अफघानः पूर्वमैं ब्रह्मदेश घ सिआम, दक्षिणमें जावा व लंका तथा पश्चिममें सौराष्ट्र व सिन्ध तक जैनधर्म फैला था। . .. श्रीयुत के. पी. जायस्वाल लिखते है कि-संप्रति के सिक्केमें एक ओर "सम्प्रदि" और दूसरी ओर क्रमशः उपर उपर, स्वस्तिक, दोबींदी, पफांदी, तथा द्वितीयाका चंद्र खुदे हुये है। वास्तवमें यह जैन चिह्न है क्योंकि जैन गृहस्थ आज भी जिनालयमें जिनेन्द्र के सामने उपरसो आकृति बनाते हैं, फर्क सिर्फ इतना ही है के बीचके तीन ढेर आज एक ही पंक्तिमें बनाये जाते है। इस संज्ञाका तात्पर्य यह है कि-"तीर्थङ्करको कृपासे हमें चारों गतिका विनाश, रत्नत्रयीकी प्राप्ति, और सिद्ध शिलाको प्राप्ति हों" | सम्राट् संप्रतिके उपर्युक्त सिक्के तक्षशिला से भो प्राप्त हुये हैं इससे ज्ञात होता है कि सम्राट् संप्रतिके समय में जैनधर्म था। । (देखो वृहदूकल्पभाष्यवृत्ति, परिशिष्टपर्व, कल्पसूत्र सुखबोधिका, संप्रति चरित्र, सन् १९३४ जूनका मोडर्नरिव्यु पृ० ६९७, जैन सत्य प्रकाश व०१ पृ. ५४, पट्टावलीसमुच्चय, अप्रकाशिततक्षशिला-निबंध इत्यादि ।) आ० मुडिंवत् सूरि (वि० सं० पूर्व १०४ करीब )-राजा पुष्यमित्र आ. मुडिंवत वगैरह जैन श्रमण तथा बौद्ध श्रमण का शिरच्छेद करते करते साकल (श्यालकोट ) तक पहुंचा था, उसने जैनधर्मके विनाश के लिए भरसक प्रयत्न किया था । - (देखो दिव्यादान २९ व्यवहार सूत्र उ०६ अवचुरी) श्रीकालिकाचार्य (वि० सं० पृ० १७ से वि० सं० ३०) उज्जयिनी का राजा दर्पण याने गर्दभिल्ल जैन आर्या साध्वी को उढा ले गया, आचार्य तथा श्रीसंघने राजाको ऐसा अनर्थ नहीं करनेके लिये समझाया, विज्ञप्ति की, मगर विषयलोलुपी राजाने सबको ठुकरा दिया। अत: आचार्यश्रीने पंजाबमें पधार कर वहांके राजाओंको जैन बनाकर उनके द्वारा उजयिनो पर धावा बुलवा दिया। इसके फलस्वरूप गर्दभिल्लका अन्त हुआ, आर्या सरस्वतीजीके आर्याव्रतका रक्षण हुआ और श्रोसंघकी इज्जत बढी। शुरूमें शकराज्य स्थापित हुआ बादमें आचार्यश्री की भगिनीके पुत्र और भडोच के नरेश बलमित्रकुमारने विक्रमादित्य नामको धारण कर पुनः उज्जयिनीमें राज्य स्थापित किया। इन्हों आचार्यश्री ने प्रतिष्ठानपुरके नरेश सातवाहनके अनुरोधसे और श्रोसंघकी मम्मतिसे श्रीसंवत्सरी पर्वको भा० शु०४ के दिन कायम किया है। .. पंजाबंक जन, आपका अधिक बिहार पंजाबमें होने के कारण. विशेषतया आपके ही अनुयायी थे और है। For Private And Personal Use Only

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