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मई ५-]
પંજાબ મેં જેનધર્મ
[१४]
भाष्यवाला तत्वार्थसूत्र बनाया है, एवं जैन दर्शनका सूत्रबद्ध शैलोसे संस्कृतमें सर्व प्रथम और अद्वितीय संग्रह किया है।
(देखो तस्वार्थसूध, प्रस्तावना) श्रमणभिक्षु । वि० सं० ६८६ से ७१२) चीनी यात्री हुएनचांग अपने भारत भ्रमणमें लिखता है कि-सिंहपुरम श्वेत पटधारी भिक्षु और श्रमण काफी संख्यामें हैं. यहां उनका जिनालय भी है, जिसमें तथागतकी प्रतिमा सी प्रतिमा है और दिवाल पर शिलालेख भी लगा हुआ है।
सर अलेग़झांडर कनिंगहामने निर्णय किया है कि- इस सिंहपुरका अर्वाचीन नाम कटास याने कटाक्षतीर्थ है जो जिल्ला जेहलम पंजाबमें प्रसिद्ध है !
सर ओरलस्टाइन बताते हैं कि-सिंहपुरके जिनालयका खण्डहर कटा ससे दो मील दूर मूर्ति प्राममें विद्यमान है। पुरातत्व विभागने इस के कई पत्थर आदि २६ ऊंट द्वारा लाकर म्युजियम-लाहोरमें रक्खे हैं।
(Buddhist Records of the Western World, Translated from the Chinese of Hiuen Tsiang by Samuel Beal 2 Vols, London, 1881. Vol 1 p. 55. and pp. 143-45. and Gazetteer of the Jhelum District, Lahore, 1904, pp. 43-46.)
आ० हरिगुप्तसरि (वि० सं० ८००के करीब) पंजाबमें पत्री नामक पर्वतके पास पवईया नगरी थी जिसका दूसरा नाम साकल है, श्यालकोट इसीका ही अर्वाचीन नाम है। आ० हरिगुप्तसूरि चन्द्रभागा नदीके किनारे पर पव्वहया नगरीमें पधारे थे, वहांका हुणवंशीय राजा तोरमाण आपका उपासक था।
आपके ही पट्टधर आ० प्रद्योतनसूरिजीने शक संवत् ७००में कुवलयमाला कथाका निर्माण किया है।
(देखो कुवलयमाला कथा, उत्तर भारतका जैनधर्म, जैन साहित्य संशोधक ख ३ पृ० १६९, क्रान्तिकारी जैनाचार्य प्रस्तावना)
[ क्रमशः
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