Book Title: Jain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan Author(s): Minakshi Daga Publisher: Rajasthani Granthagar View full book textPage 6
________________ 4 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन रुपान्तरण होता रहता है, इसी प्रकार विश्व व्यवस्था का क्रम संचालित होता है । षट् द्रव्यवाद में विश्व व्यवस्था के सम्बन्ध में वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है । उनके नवतत्ववाद और गुणस्थान क्रम में आत्मविकास और मोक्ष दर्शन का व्यवस्थित और सुनिश्चित मार्ग दर्शन करता है। 1 भगवान महावीर ने विश्व को ऐसा नीति दर्शन दिया, जो जीवन के हर क्षेत्र में समता और अहिंसा की प्रतिष्ठा करता है । उन्होंने मानव की क्षमतानुसार धर्म को दो रूपों में प्रस्तुत किया । संसार से विरक्त व्यक्तियों को अनगार धर्म रूप में हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह से सर्वथा मुक्त रहने का उपदेश दिया। वहीं जिनमें इतनी क्षमता नहीं थी, उनको सागार धर्म रुप में हिंसा और परिग्रह को सीमित करने, परिहार्य असत्य और चोरी से बचने तथा विवाहित स्त्री और पुरुष के अतिरिक्त ब्रह्मचर्य का पालन करने की दिशा दिखाई । इस प्रकार जैन धर्म के नैतिक नियम एक आदर्श, सुसंस्कृत व सुव्यवस्थित समाज के निर्माण में सहायक है। महावीर ने सूत्र कृतांग में कहा - कम्मुणा बम्भणो होई, कम्मुणा होइ खत्तिओ, सो कम्मुणा होइ, सुद्दोहवइ कम्मुणा ॥ अर्थात् अपने कर्म, व्यवहार और व्यवसाय से मनुष्य ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होता है । समाज सेवा के किसी भी कार्य के आधार पर श्रेष्ठता और हीनता की कल्पना अज्ञान का परिचायक है। उन्होंने अपने शासन में जहाँ एक ओर सर्वोच्च प्रतिष्ठित ब्राह्मण वर्ग इन्द्रभूति गौतम आदि अनेकों को प्रव्रजित किया वहीं दूसरी ओर शूद्र जाति के हरिकेशी चाण्डाल को भी अपना शिष्य बनाया, दासी चन्दन बाला को भी अपने धर्म में प्रव्रजित कर नारी संघको नेतृत्व प्रदान किया । इस प्रकार भगवान महावीर ने नारी उत्पीड़न, दास प्रथा, जातिवाद, सांप्रदायिक आग्रह और अभिनिवेश के विरुद्ध महान् क्रांति की मशाल जलायी । उन्होंने गुणों की पूजा पर बल दिया, नाम व अन्य बाहरी आवरणों को गौण समझा । इसी आधार पर जैन धर्म के नमस्कार महामंत्र में गुणों का स्मरण और वंदन है, किसी का नाम उसमें नहीं है । इसीलिए जैन धर्म दर्शन देश और काल की सीमाओं से अबाधित और शाश्वत है। मैं विदुषी लेखिका का जैन धर्म के उज्ज्वल विचारों को देश बहुजनवर्गी भाषा में प्रस्तुत करने की मनोवृत्ति तथा उसे उल्लेखनीय सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के कारण हार्दिक अभिनन्दन करता । यह सभी मानवों के मस्तिष्क को प्रकाश देती हुई, आह्वान की घोषणा करती है। इसमें किंचित भी सन्देह नहीं कि यह शोध कृति आगामी शोधार्थियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगी । डॉ. पी.सी. जैन पूर्व निदेशक, जैन अनुशीलन केन्द्र, जयपुरPage Navigation
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