Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1923
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 34
________________ ३०] जैन साहित्य संशोधक [खंड २ नं० ३११. श्रीमत्संवत् १६७१ वैशाष सुदि ३ शनौ श्री आगरानगरे ओसवाल ज्ञाती लोढा गोते-गावंसे सा० पेमन भार्या श्री शक्तादे पुत्र सा० षेतसी भा० भक्तादे पुत्र सा०-सांगश्रा अंचलगच्छे पूज्य श्री ५ कल्याणसागरसूरीणामुपदेशेन श्री विमलनाथ बिंब प्रतिष्ठापितं सा० Qरपाल....। नं. ३१२. [सं० १६७१ ] ॥ संघपति श्री कुंरपाल सं०-सोनपालैः स्वमातृपुन्यार्थ श्री अंचलगच्छे पूज्य श्री ५ श्री धर्ममूर्तिसूरि पट्टाम्बुजहंस श्री ५ श्री कल्याणसागरसरीणामुपदेशेन श्रीपार्श्वनाथबिंब प्रतिष्ठापितं पूज्यमानं चिरं नंदतु ॥ नं० ४३३. श्रीमत्संवत १६७१ वर्षे वैशाष सुदि ३ शनौ श्री आगरावास्त-योसवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे गावं-ज्रा स० ऋषभदास भार्या रेषश्री तत्पुत्र श्री कुंरपाल सोनपाल संघाधिपे स्वानुजवर दुनीचंदस्य पुण्यार्थ उपकाराय श्री अंचलगच्छे पूज्य श्री ५ कल्याणसागरसूरीणामुपदेशेन श्री आदिनाथबिंब प्रतिष्ठापितं ॥ ] प्रशस्ति की नकल ( नोट:- [ ] इन चिन्हों में दिये अक्षर टूट गए हैं या साफ नहीं पढे जाते ) ॥ पातसाहि श्री जहांगी[२] ॥ १. ॥ ॐ ॥ श्री सिद्धेभ्यो नमः ॥ स्वस्ति श्री विष्णुपुत्रो निखिलगुणयुतः पारगो वीत रागः । पायाद् वः क्षीणका सुरशिखरिसमः क [ल्प]२. तीर्थप्रदाने ॥ श्री श्रेयान् धर्ममूर्ति विकजनमन: पंकजे बिम्बlभानुः । कल्याणाम्भोधिचन्द्रः सुरनरनिकरैः सेव्य [ मा]३. नः कृपालुः ॥ १ ॥ ऋषभप्रमुखाः सार्वा । गौतमाद्या मुनीश्वराः । पापकर्मविनिर्मुक्ताः क्षेमं कुर्वन्तु सर्वदा ॥ २ ॥ कुंर४. पालस्वर्णपालौ । धर्मकृत्यपरायणौ । स्ववंशकुजमार्तण्डौ । प्रशस्तिलिख्यते तयोः ॥ ३॥ श्रीमति हायने रम्ये चन्द्रर्षिरस५. भूमिते १६७१ । षड् त्रिंशत्तिथिशाके १९३६ विक्रमादित्यभूपतेः॥ ४ ॥राधमासे वस तत्तौ शुक्लायां तृतीयातिथौ । युक्ते तु ६. रोहिणीभेन निर्दोषे गुरुवासरे ॥ ५ ॥ श्री मदञ्चल गच्छाख्ये । सर्वगच्छावतंसके । सिद्धान्ताख्यातमार्गेण । राजिते विश्वविस्तृते । ६ । उग्रसे1 लेख में विव 2 विसर्ग खोदकर काटी गई है जिस से विसम सा प्रतीत होता है । 3 षट् चाहिये। 4 "ल" खोदने से रह गया था। पीछे च ग के नीचे खोदा गया है। 5 ग्ग के लिये प्र चिन्ह लिखा गया है।

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