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जैन साहित्य संशोधक
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(जैनेन्द्र का ) और पाणिनिका उल्लेख्न और भी एक दो जगह हुआ है । मुरु, शुक्र, विशालाक्ष, परी. क्षित, पराशर, भीम, भीष्म, भारद्वाज आदि नीतिशास्त्रप्रणेताओंका भी वे कई जगह स्मरण करते हैं । कौटिलीय अर्थशास्त्रसे तो वे अच्छी तरह परिचित हैं ही। हमारे एक पण्डित मित्रके कथनानुसार नीतिवाक्यामृतमें सौ सवा सौ के लगनग ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ वर्तमान कोशोंमें नहीं मिलता। अर्थशास्त्रका अध्येता ही उन्हें सम्म सकता है। अश्वविद्या, गजैविद्या, रत्नपरीक्षा, कामशास्त्र, वैद्यक आदि विद्याओके आचार्योंका भी उन्होंने कई प्रसंगो कर किया है । प्रजापतिप्रोक्त चित्रकर्म, वराहमिहिरकृत प्रतिष्टाकाण्ड, आदित्यमंत, निमित्ताध्याय, महाभारत, रनरीक्षा, पतंजलिका लोगशास्त्र और वररुचि, व्यास, हरबोध, कुमारिलकी उक्तियोंके उद्धरण दिये हैं। नद्धान्तवैशेषिक, तार्किक वैशेषिक, पाशुपत, कुलाचार्य, सांख्य, दशबलशासन, जैमिनीय, बाईसत्य, वेदान्तवादि, काणाद, ताथागत, कापिल, ब्रह्माद्वैतवादि, अवधूत आदि दर्शनोंके सिद्धान्तोपर विचार किया है । इनके सिवाय मतग, भृगु, भर्ग, भरत, गौतम, गर्ग, पिंगल, पुलह, पुलोम, पुलस्ति, पगशर, मरीचि, विरोवन, धूमध्वज, नीलपट, अहिल, आदि अनेक प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध आचार्योंका नामोबेख किया है । बहुतसे ऐतिहासिक दृष्टान्तोंका भी उल्लेख किया गया है । जैसे यवनदेश (यूनान? ) में मणिकुण्डला रानीने अपने पुत्रके राज्यके लिए विषदूषित शराबके कुरलेसे अजराजाको, सूरसेन (मथुरा) में वसन्तमतिने विषमय आलसे रंगे हुए अधरोंसे सुरतविलास नामक राजाको, दशार्ण ( मिलसा) में वृकोदरीने विषलिप्त करधनीसे मदनार्णव राजाको, मगध देशमें मदिराक्षीने तीखे दर्पणसे मन्मथविनेदको, पाच्य देशमें चण्डरसा रानीने कवरीमे छुपी हुई छुरीसे मुण्डीर नामक राजाको मार डाला * । इत्यादि । पौराणिक आख्यान भी बहुतसे आये हैं। जैसे प्रजापति ब्रह्माका चित्त अपनी लड़की पर चलायमान हो गया, वररुचि या कात्यायनने एक दासीपर रीझकर उसके कहनेसे मयका घड़ा उठाया, आदि । इन सब बातोसे पाठक जान सकेंगे कि आचार्य सोमदेवका ज्ञान कितना विस्तृत और व्यापक था।
उदार विचारशीलता। यशस्तिलकके प्रारंभके २० वें वे कमें सोमदेवसूरि कहते हैं:
लोको युक्तिः कलाश्छन्दोऽलंकाराः समयागमाः ।
सर्वसाधारणाः सद्भिस्तीर्थमार्ग इव स्मृताः ॥ . अर्थात् सज्जनोंका कथन है कि व्याकरण, प्रमाणशास्त्र (न्याय ), कलायें, छन्दःशास्त्र, अलंकारशास्त्र और (आहेत, जैमिनि, कपिल, चार्वाक, कणाद, बौद्धादिके ) दर्शनशास्त्र तीर्थमार्गके समान सर्वसाधारण है। अर्थात् जिस तरह गंगादिके मार्ग पर ब्राह्मण भी चल सकते हैं और चाण्डाल भी, उसी तरह इनपर भी सबका अधिकार है।
१-" पूज्यपाद इव शब्दैतिथेषु...पणिपुत्र इव पदप्रयोगेषु " यश० भा॰ २, पृ० २३६ । -२, ३, ४, ५, -" रोमपाद इव गजविद्यासु रैवत इव हयनयेषु शुकनाश इव रत्नपरीक्षासु, दत्तक इव कन्तुसिद्धान्तेषु "-आ०४, पृ. २३६-२३७ । 'दत्तक' कामशास्त्रके प्राचीन आचार्य हैं । वात्स्यायनने इनका उल्लेख किया है। 'चारायण' भी कामशास्त्रके आचार्य हैं। इनका मत यशस्तिलकके तीसरे आश्वासके ५०९ पृष्ठमें चरकके साथ प्रकट किया गया है।
१, २, ३, ४,५-उक्त पाँचों प्रन्योंके उद्धरण यश. के चौथे आश्वासके पृ. ११२-१३ और ११९ में उद्धत हैं। महाभारतका नाम नहीं है, परन्तु-पुराणं मानवो धर्मः सागो वेदश्चिकित्सितम्' आदि ठोक महाभारतसे ही उद्धृत किया गया है।
६-तदुक्तं रत्नपरीक्षायाम्-'न केवलं' आदि; आश्वास ५, पृ. २५६ । ७-यशस्तिलक आ० ६, पृ. २७६-७७।८--९-आ० ४, पृ. ९९।१०,११-आ० ५, पृ०२५१-५४ । १२-इन सब दर्शनोंका विचार पाँचवें आश्वासके पृ० २६९ से २७७ तक किया गया है। १३-देखो आश्वास ५, पृ. २५२-५५ और २९९।।
* यशस्तिलक आ० ४, पृ. १५३ । इन्हीं आख्यानों का उल्लेख नीतिवाक्यामृत (पृ. २३२) में भी किया गया हे। आश्वास ३. पृ० ४३१ और ५५० में भी ऐसे ही कई ऐतिहासिक दृष्टान्त दिये गये हैं।
४ यश. आ० ४. पृ. १३८-३९ ।
+ "लोको ब्याकरणशास्त्रम् , युक्तिः प्रमाणशास्त्रम् , .....समयागमाः जिनजैमिनिकपिलकणचरचार्वाकशाक्याना सिद्धान्ताः । सर्वसाधारणाः सद्भिः काथताः प्रतिपादिताः। क इव तीर्थ मार्ग इव । यथा तीर्थमागें ब्राह्मणाश्चमन्ति, पाण्डाला भपि गच्छन्ति, नास्ति तत्र दोषः। "-श्रुतसागरी टीका ।