Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1923
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay
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प्रो. ल्युमन अने आवश्यक सूत्र
जर्मनीना प्रसिद्ध प्रोफेसर ल्युमन जैन आगमोना घणा ऊंडा अभ्यासी छे. लगभग अर्था सैका जेटला लांबा समयथी तेओ जैन साहित्य, अवगाहन करता आव्या छे अने अनेक जैन सूत्रोप्रन्थोना सूळ, नियुक्ति, भाष्य, टीका,टिप्पणी आदिने अर्वाचीन शास्त्रीय पद्धतिए संशोधित-अनुवादित करी तेमणे प्रकाशमां आण्या छ.ए बधामां आवश्यकसूत्र अने तेने लगता साहित्य उपर जे तेमणे अथाग परिश्रम उठान्यो छे अने ते विषयमा जे निबन्धो आदि लख्या छे ते तो खरेखर तेमनी जैन साहित्य विषयक सूक्ष्म-प्रवीणतानी आश्चर्य-कारक साक्षी आपे छे. .
जर्मनीना लीप्झीक शहेरमाथी प्रकट थती ओरिएन्टल सोसायटीनी प्रन्थमाळा (Abhand. lungen fur die Kunde des Morgenlandes) मां आवश्यक-कथा ( Die Avashyaka Erzahlungen) नामे एक प्रन्थ छपाववानी तेमणे सुरुआत करी हती,जेमा आवश्यक सूत्रनी चूर्णि अने टीकामां आवती बधी कथाओ मूळ रूपे आपी, जुदी जुदी प्रतोमा मळी आवतां तेमनां पाठान्तरो तथा बीजा बीजा प्रन्थोमां मळी आवतां रूपान्तरोनी घणी विस्तृत रूपरेखा आलेखवानी तेमनी इच्छा हती. परंतु, ते माटे जोइतां बधां साधनो-भाष्य, चूर्णि, टीका आदिनी जुदी जुदी प्रतो विगेरे-न मळी शकवाथी, पचासेक पानां छापी तेमने ए कार्य बन्ध करवू पडयुं हतुं. ते दरम्यान सने १८९४ मां जिनेवा (Geneve) मां भराएली इन्टर नेशनल ओरिएन्टल कोंग्रेसमां वांचवा माटे आवश्यकसूत्र साहित्य उपर जर्मन भाषामां एक विस्तृत निबंध तेमणे तैयार कयों हतो जेमां आवश्यक सूत्रने लगतुं जेटलुं साहित्य मळी आवे छे तेनुं अतिसूक्ष्मरीते विवेचन कर्यु हतुं.ए निबन्ध (Uebersicht uber die Avashyaka-Litteratur) ना नामे तेमणे स्वतंत्ररीते प्रकट कर्यो छे; जेना डेमी साइझना आखा कागळ जेवडा ५० उपर पानां छे. एमां प्रथम श्वेतांबर अने दिगंबर बने जैन संप्रदायोमा आवश्यकने शु स्थान छे ते बताव्यु छ; अने पछी आवश्यक सूत्रनी भद्रबाहुकृत नियुक्तिमा आवता बधा विषयोनो बहु खूबी भरेलो सार आप्यो छे. ए सारमा साथे साथे नियुक्तिमा आवता विषयोने बीजां बीजां सूत्रो अने भाष्यो विगैरेमा आवता तेज विषयो साथे, कोष्टको करी करी गाथाओवार सरखाव्या छे. आवश्यकचूर्णि अने हरिभद्रकृत टीकामां परस्पर जे जे विशेष छे ते सपळा मूळ पाठो साथे समजाव्या छे. पछी जिनभद्र क्षमाश्रमणकृत विशेषावश्यक भाष्यनुं लंबाणथी विवेचन कर्यु छ. एमां पण पहेला, विशेषावश्यक ए शुं छे, तेनी टीका विगेरे कोणे करेली हे, ए बताव्युं छे; अने त्यार बाद नियुक्तिनी गाथाओने भाष्यना विवरण साथे विषयवार समजावी छे. अने ए उपरांत पछी आखा भाष्यनो सार आप्यो छे. एटलं करीने पण ए जर्मनदेशीय गीतार्थने संतोष न थयो तेथी ए निबन्धनी एक जूदी पूर्ति करी छे, जेमा विशेषावश्यक भाष्यनी शीलांकाचार्यकृत प्राचीन अने तुर्लभ्य टीकामा जे जे विशेष विशेष उल्लेखो छे ते बधा मूळरूपे गाथावार छपावी दीधा छे अने छेवटे ए टीकानी साथी जूनी ताडपत्रनी प्रति जे हालमां पूनाना भांडारकर

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