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जैन साहित्य संशोधक
[ खण्ड २
किसी आचार्य की कल्याणकारी देशनो को सुनकर राजश्री के पुलने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया ।
१७-१८ ऋषभदास के पुत्र कुंरपाल स्वर्णपाल ( सोनपाल ) । तिन के गुणों का वर्णन | दान देने में उन की कर्ण से उपमा |
१९- २० ये जहांगीर बादशहा के अमात्य ( मंत्री ) थे; बडे धनवान थे; सदा शुभकाम करते और पुण्य क्षेत्रों में धन लगाते थे ।
२१ जहांगीर की आज्ञा से दोनों भाई धर्म का काम करते थे ।
२२-२३ उन्हों ने तीन भवन वाली एक पौषधशाला बनवाई | संघाधिपति बनकर - शिखर, शत्रुंजय, आबू, गिरनार तथा अन्य तीर्थों की यात्रा की ।
२४ १२५ घोडे, २५ हाथी यात्रा के लिये जुदा कर छोडे थे ।
२५ उन्हों ने दो चैत्य बनवाए जो बहुत ही ऊंचे, चित्रों और झंडों से सजे हुये थे ।
२६ अंचल गच्छ की उत्पत्ति | भगवान महाबीर से ४८ वें पट्ट पर श्री आर्य रक्षित सूरि हुए । उन्हों ने श्री सीमंधर स्वामी की आज्ञा पूर्वक चक्रेश्वरी देवी से वर प्राप्त करके विधिपक्ष अर्थात् अंचलगच्छ चलाय' ।
२७-३० पट्टावलि |
३१-३२ कुंरपाल सोनपालने श्री कल्याणखागरके उपदेश से श्रेयांस नाथजी का मंदिर बनवाया ।
३३-३४ और उसी समय ४५० अन्य प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई। इस से उन की बडी कीर्ती हुई।
३५ संघराजे ... बेटे सोनपाल... चतुर्भुज... दो बेटियां । प्रेमन के तीन पुत्र... ३६ वेतसी और नेतसी जो शीलपालने से मानो सुदर्शन ही विद्यमान था । बुद्धिमान, तेजस्वी और यशस्वी संघराज के चार बेटे थे ।
३७ कुंरपाल की भार्या.. . डंख की पुत्री का नाम जादो था । जेष्ठमल्ल गुणों
का धाम
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३८ रेवश्री के दोनो पुत्र ( कुंरपाल सोनपाल ) अपनी पुत्रवधुओं संघश्री सुलसश्री, दुर्ग श्री आदि के गुणों से शोभा पाते रहें । आशीर्वाद ( जिस के बहुत से अक्षर टूट गए है ) |
१ कल्याणदेशना से शायद श्रीकल्याणसागर जी के उपदेश का आशय हो ।
२ शायद ऋषभदास की माता का नाम राजश्री या ।
३ महाविदेह क्षेत्र में वर्तमान तीर्थकर ।
४ इन प्रतिमाओं का पता लगाना चाहिये ।
५ यहाँ से लेव का सम्बंध ठीक नहीं बैठता ।