Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1923
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ ३४ ] 39 "" " "" 39 "" "" 22 "" " 39 39 99 19 जैन साहित्य संशोधक [ खण्ड २ किसी आचार्य की कल्याणकारी देशनो को सुनकर राजश्री के पुलने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया । १७-१८ ऋषभदास के पुत्र कुंरपाल स्वर्णपाल ( सोनपाल ) । तिन के गुणों का वर्णन | दान देने में उन की कर्ण से उपमा | १९- २० ये जहांगीर बादशहा के अमात्य ( मंत्री ) थे; बडे धनवान थे; सदा शुभकाम करते और पुण्य क्षेत्रों में धन लगाते थे । २१ जहांगीर की आज्ञा से दोनों भाई धर्म का काम करते थे । २२-२३ उन्हों ने तीन भवन वाली एक पौषधशाला बनवाई | संघाधिपति बनकर - शिखर, शत्रुंजय, आबू, गिरनार तथा अन्य तीर्थों की यात्रा की । २४ १२५ घोडे, २५ हाथी यात्रा के लिये जुदा कर छोडे थे । २५ उन्हों ने दो चैत्य बनवाए जो बहुत ही ऊंचे, चित्रों और झंडों से सजे हुये थे । २६ अंचल गच्छ की उत्पत्ति | भगवान महाबीर से ४८ वें पट्ट पर श्री आर्य रक्षित सूरि हुए । उन्हों ने श्री सीमंधर स्वामी की आज्ञा पूर्वक चक्रेश्वरी देवी से वर प्राप्त करके विधिपक्ष अर्थात् अंचलगच्छ चलाय' । २७-३० पट्टावलि | ३१-३२ कुंरपाल सोनपालने श्री कल्याणखागरके उपदेश से श्रेयांस नाथजी का मंदिर बनवाया । ३३-३४ और उसी समय ४५० अन्य प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई। इस से उन की बडी कीर्ती हुई। ३५ संघराजे ... बेटे सोनपाल... चतुर्भुज... दो बेटियां । प्रेमन के तीन पुत्र... ३६ वेतसी और नेतसी जो शीलपालने से मानो सुदर्शन ही विद्यमान था । बुद्धिमान, तेजस्वी और यशस्वी संघराज के चार बेटे थे । ३७ कुंरपाल की भार्या.. . डंख की पुत्री का नाम जादो था । जेष्ठमल्ल गुणों का धाम ...... " ३८ रेवश्री के दोनो पुत्र ( कुंरपाल सोनपाल ) अपनी पुत्रवधुओं संघश्री सुलसश्री, दुर्ग श्री आदि के गुणों से शोभा पाते रहें । आशीर्वाद ( जिस के बहुत से अक्षर टूट गए है ) | १ कल्याणदेशना से शायद श्रीकल्याणसागर जी के उपदेश का आशय हो । २ शायद ऋषभदास की माता का नाम राजश्री या । ३ महाविदेह क्षेत्र में वर्तमान तीर्थकर । ४ इन प्रतिमाओं का पता लगाना चाहिये । ५ यहाँ से लेव का सम्बंध ठीक नहीं बैठता ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126