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आशीर्वचन
जैन साहित्य के अक्षय भण्डार में जैन आगम और उनका व्याख्या साहित्य सर्वोपरि महत्त्व का साहित्य है । उत्तरवर्ती साहित्य में पुराण साहित्य ऐसा है, जो जैन दर्शन के गूढ़ तत्त्वों को सरलता और सरसता से अपने साथ गुंफित किये हुए है । उस साहित्य में पद्म पुराण, हरिवंश पुराण और महा पुराण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं । इनका समय ईसा की सातवीं से दशवीं शताब्दी के मध्य माना गया है। डॉ० देवी प्रसाद मिश्र ने इन आधारभूत पुराणों की बुनियाद पर गवेषणात्मक एवं आलोचनात्मक "जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन" नामक शोधप्रबन्ध लिखा है । इसमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा एवं साहित्य, ललित कला, वास्तु एवं स्थापत्य कला, धर्म एवं दर्शन, भौगोलिक दशा आदि विषयों से सम्बद्ध सामग्री को वर्गीकृत कर व्यवस्थित रूप में प्रस्तुति दी है। अन्त में प्रामाणिक एवं तथ्यपरक चित्र-फलकों द्वारा शोध-प्रबन्ध को समलंकृत किया गया है । यह प्रस्तुति जितनी सहज है, उतनी ही सूक्ष्म है । -
लेखक ने पारम्परिक पुरागों से जन पुराणों की भिन्नता दिखाई है और जैन पुराण साहित्य में उक्त तीनों को सबसे प्राचीन एवं मूलाधार प्रमाणित किया है। इनके आधार पर यह सांस्कृतिक अध्ययन समीक्षित हुआ है । इसमें तत्कालीन भारतीय जीवन की झलक साफ-साफ दिखाई दे रही है । कुछ ऐसी बातें भी इससे उभर कर सामने आती हैं, जो वर्तमान लोक-जीवन से जुड़कर उसे नई दिशा दे सकती है । लेखक का यह श्रम मूल्याह है। पुराण साहित्य के जिज्ञासु व्यक्तियों, विद्वानों एवं शोधार्थियों द्वारा इसका समुचित उपयोग ही प्रस्तुत पुस्तक की सार्थकता है।
आचार्य तुलसी १७ अगस्त, १६८७
युवाचार्य महाप्रज्ञ अणुव्रत भवन नई दिल्ली-२
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