Book Title: Jain Pratimavigyan Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 5
________________ प्रकाशकीय जैन प्रतिमाविज्ञान पर हिन्दी भाषा में अद्यावधि दो-तीन लघुकाय कृतियां ही प्रकाशित हुई हैं। डॉ० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी की यह विशालकाय कृति न केवल गवेषणापूर्ण अध्ययन पर आधारित है, अपितु विषय को काफी गहराई से एवं व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करती है। आशा है विद्वत् जगत् में इस कृति को समुचित स्थान प्राप्त होगा। मारतीय मूर्तिकला के क्षेत्र में जैन प्रतिमाओं का ऐतिहासिकता एवं कला-पक्ष दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जैन प्रतिमाविज्ञान में जिन प्रतिमाओं के साथ-साथ यक्ष-यक्षी युगलों, विद्यादेवियों और सरस्वती आदि की प्रतिमाओं का भी विशिष्ट स्थान रहा है। डॉ० तिवारी ने इन सबको अपने ग्रन्थ में समाहित किया है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि डॉ० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी पाश्र्वनाथ विद्याश्रम के शोध छात्र रहे हैं और उनको अपने शोध-प्रबन्ध 'उत्तर भारत में जैन प्रतिमाविज्ञान' पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा ई० सन् १९७७ में पी-एच०डी० की उपाधि प्रदान की गयी। प्रस्तुत कृति उनकी उक्त गवेषणा का संशोधित रूप है जिसको प्रकाशित कर पाठकों के हाथों में प्रस्तुत करते हुए मुझे अति प्रसन्नता हो रही है। प्रस्तुत कृति के प्रकाशन हेतु भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली एवं जीवन जगन् चैरिटेबल ट्रस्ट, फरीदाबाद ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया है; इस हेतु मैं उनका अत्यन्त आभारी हूं। इस सहायता के कारण ही प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन सम्भव हो सका है । मैं लालभाई दलपतमाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद; जैन जर्नल, कलकत्ता तथा भारत कला भवन, वाराणसी का भी आभारी हूं, जिन्होंने प्रस्तुत कृति के प्रकाशन हेतु कुछ चित्रों के ब्लाक्स उपलब्ध कराकर सहयोग प्रदान किया है। ___ मैं संस्थान के निदेशक, डॉ० सागरमल जैन, डॉ० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी एवं डॉ० हरिहर सिंह का भी आभारी हूं जिन्होंने ग्रन्थ के मुद्रण एवं प्रफरीडिंग सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का निर्वाह कर इस प्रकाशन को सम्भव बनाया है। ___ अन्त में मैं संस्थान के मानद् मन्त्री माई भूपेन्द्रनाथ के प्रति आभार व्यक्त करता हूं जिनके प्रयत्नों के कारण ही संस्थान के प्रकाशन कार्यों में अपेक्षित प्रगति हो रही है। शादीलाल जैन अध्यक्ष पाश्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी-२२१००५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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