Book Title: Jain Mahapurana Kalaparak Adhyayana Author(s): Kumud Giri Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 8
________________ उपोद्घात : vii केवल ऋषभदेव एवं शिव की पौराणिक और आधारभूत एकात्मकता का संकेत देते हैं, वरन् ब्राह्मण परम्परा के साथ पूर्वमध्यकाल में जैनधर्म के सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों को भी उजागर करते हैं। ___ महापुराण की रचना राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष प्रथम एवं कृष्ण द्वितीय के शासन काल एवं क्षेत्र में हुई। अतः महापुराण की कलापरक सामग्री का स्पष्टतः समकालीन राष्ट्रकूट कलाकेन्द्र एलोरा (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) की जैन गुफाओं ( गुफा संख्या ३० से ३४ ) की मूर्तियों से तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। विदुषी लेखिका ने एलोरा की जैन गुफाओं एवं महापुराण की कलापरक सामग्री के तुलनात्मक अध्ययन का यथेष्ट प्रयास किया है जिससे प्रस्तुत पुस्तक के महत्त्व एवं प्रासंगिकता में वृद्धि हुई है। एलोरा में २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ और गहनसाधना के प्रतीक ऋषभनाथ के पुत्र बाहुबली की सर्वाधिक मूर्तियाँ उकेरी हैं जिनके निरूपण में स्पष्टतः महापुराण के विवरणों का प्रभाव परिलक्षित है । प्रस्तुत पुस्तक में उपर्युक्त तथा अन्य कई महत्त्वपूर्ण पक्षों पर विश्लेषणात्मक दृष्टि से चर्चा की गयी है। मुझे प्रसन्नता है कि लेखिका मेरी शोधछात्रा रही हैं। इस महत्त्वपूर्ण गवेषणापरक पुस्तक के लिए मैं उन्हें आशीर्वाद एवं बधाई देता हूं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक सम्बन्धित क्षेत्र में अध्ययन की नूतन सम्भावनाओं की दृष्टि से एक शोधपरक ऐतिहासिक पुस्तक के रूप में उपयोगी सिद्ध होगी। रामनवमी, डॉ० मारुतिनन्दन तिवारी ९ अप्रैल १९९५ रीडर कला-इतिहास विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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