Book Title: Jain Mahapurana Kalaparak Adhyayana Author(s): Kumud Giri Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 6
________________ उपोद्घात विगत कुछ वर्षों में जैन धर्म और कला के विविध पक्षों पर विस्तार से कार्य हए हैं जो विभिन्न पुस्तकों एवं लेखों के रूप में उपलब्ध हैं। ऐसे कार्यों में कई खण्डों में प्रकाशित जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ. जैन रूपमण्डन ( यू० पी० शाह ) और भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली द्वारा तीन खण्डों में प्रकाशित जैन कला व स्थापत्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। कुछ विद्वानों ने जैन ग्रन्थों के आधार पर सांस्कृतिक जीवन का अध्ययन भी प्रस्तुत किया है । जैन ग्रन्थों में पुराणों का विशेष महत्त्व है। ब्राह्मण परम्परा के समान ही जैन परम्परा में भी विपुल संख्या में पुराणों की रचना की गयी। श्वेताम्बर परम्परा में इन्हें चरित या चरित्र ग्रन्थ कहा जाता है। ईसा की लगभग चौथी से पन्द्रहवों शताब्दी के मध्य अनेक जैन पुराणों या चरित ग्रन्थों की रचना की गयी, जो ब्राह्मण पुराणों के समान ही भारतीय संस्कृति के विश्वकोश हैं । जैन पुराणों में कथाओं के माध्यम से पूर्व परम्परा और समकालीन धार्मिक जीवन के विविध पक्षों को उजागर करने के साथ ही सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और कलापरक विषयों की भी सविस्तर चर्चा की गयी है । ये कथायें और इनमें अभिव्यक्त विवरण समकालीन जीवन और संस्कृति के विविध आयामों को सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों ही स्तरों पर प्रस्तुत करती हैं जिनकी प्रासंगिकता और विश्वसनीयता इतिहास-सिद्ध है । इतिहासकार और शोधप्रज्ञ को केवल पूर्वपरम्परा एवं समकालीन व्यवहार की शृंखलाओं को समझना और कालक्रमानुसार आबद्ध करना होता है। पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, महापुराण एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र जैसे जैन ग्रन्थों पर सांस्कृतिक जीवन के अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण शोधकार्य हुए हैं, किन्तु उनमें वर्णित कलापरक सामग्री का अध्ययन अपेक्षित विस्तार और समीक्षा की दृष्टि से अभी तक नहीं प्रस्तुत हुआ है । ये पुराण विभिन्न कथाओं के माध्यम से अपने समय की देवमूर्तियों एवं प्रसंगवश उनके लक्षणों, स्थापत्य के विविध रूपों, लोककलाओं के विविध आयामों तथा नत्य, संगीत, वाद्य आदि से सम्बन्धित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 334