Book Title: Jain Jyoti
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Gyandip Prakashan

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Page 13
________________ (vii) ) परिषयों बीत सेवा की गतिक पानकारी के अतिरिक्त बस्यन्त जीवित थे, क्योंकि पौधे दिन संदर्भ बों का संकेत किया गया है बबा पो मान कोषको संदर्भग्रन्थ संकेतसूची में निर्दिष्ट हुए हैं, उनमें से प्रायः कोई भी की टंक के समय तक प्रकाशित ही नहीं हुए थे। स्व. शुल्लक जिनेन्द्रवी का 'पने सिद्वान्तको विशालकाय ग्रंथ है, किन्तु वह मुस्थतया सिद्धान्तकोख है। प्रसंगवश 'इतिहास' के अन्तर्वात प्रायः कतिपय ऐतिहासिक व्यक्तियों, स्थानों पटनाबों आदि का भी उसमें समावेश करने का प्रयास किया है, उनमें से अनेक परिचय या तथ्य त्रुटिपूर्ण, सदोष, मर्याप्त या भ्रान्तिपूर्ण है। मतएव उक्त दोनों में से किसी भी प्रकाशन से प्रस्तुत कोशको स्थानपत्ति नहीं होती, इसकी मावश्यकता एवं उपयोगिता भी कम नहीं होती। यों, टियां, कमियां या दोष इस कोश में भी हैं, और उनका जितना और पंसा बहसास स्वयं उसके निर्माता को है, वैसा और उतना शायद ही किसी प्रबुद्ध पाठक को है। श्रम और समय की परवाह न करते हुए और यथासमव सावधानी बरतते हुए भी कुछ कथन भ्रामक या अयथार्थ भी हो गये हो सकते है, मुद्रण की भी कुछ अशुद्धियां रह गई हो सकती हैं, जिन सबके लिए सहत्य पाठकों से विनम्र क्षमा याचना है। जैसा कि कहा जा चुका है, कोक की सामग्री अकारादि क्रम से ही, गत ५० वर्षों से एकत्र होतीबा रही थी -उसे उसी रूप में प्रकाशित करने का साहस नही होता था। किन्तु, वृद्धावस्था के इतवेग से आक्रमण तथा शारीरिक स्वास्थ्य की उत्तरोत्तर गिरती ही स्थिति देखकर विचार हुमा कि जितना और जैसा भी संभव हो इसे प्रकाशित कर देना ही उचित है। हमारे सम्पादन में २८ वर्ष सफलता पूर्वक चलकर जैनसन्देश सोषांक का प्रकाशन संघ के वर्तमान अधिकारियों की कृपा से स्थगित हो गया, किन्तु तीर्थंकर महावीर स्मृति केन्द्र समिति, उ०प्र०, लखनऊ के अधिकारियों ने बैसी शोषपत्रिका के अभाव को पूत्ति के लिए 'शोधादर्श' का प्रकाशन उससे अधिक भव्यतर रूप में प्रारम्भ करने का निर्णय कर लिया। हम सुअवसरका साम उठाकर, उनके आग्रह से, अपनी पूर्व सचित सामग्री को मूलाधार बनाकर वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर की प्रविष्टियों को क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित एवं सांकेतिक संदों से सत्यापित करके कोसगत सामग्री का क्रमिक प्रकाशन प्रारम्भ हवा और शोषाव के प्रथम छः बैंकों में कोश के १२० पृष्ठ क्रमशः मुखित एवं प्रकाशित हो गये। उन्हें पढ़कर बनेक प्रबुद्ध पाठकों को प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई-बह अभूतपूर्व योजना है; अत्यन्त उपयोगी है, महत्वपूर्ण है, अत्यावश्यक है, इसे

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