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(vii) बाल रक्खें, इसे पुस्तकाकार प्रकाशित करदें, इत्यादि। अतएव यही निर्णय लिया कि नामरी वर्णमाला के १२ स्वराबरों (-) में समाविष्ट कोश का प्रथम बम प्रकाशित कर दिया बाय। साथ में (प्रास्ताविक भूमिका) बामुख के अतिरिक्त, परिशिष्टगत, उसी अकराविक्रम में प्रदत्त प्रविष्टियों में, २०वीं शती ई. में मधुना दिवंगत विशिष्ट व्यक्तियों, विशेषकर विद्वानों, साहित्यकारों, कलाकारों, समाजसेवियों या अन्य उल्लेखनीय उपलग्धियां प्राप्त स्त्री-पुरुषों के संक्षिप्त परिचय दे दिये बायें। वर्तमान मती में दिवंगत व्यक्तियों के चुनाव में पर्याप्त कठिनाई एवं असमंजस की स्थिति रहती है-वे हमारे अपेक्षाकृत साक्षात् परिषय में रहे होते है, दूसरे, उनके निकर बात्मीय भी वर्तमान होते हैं, तीसरे कवन की ग़लनियां सहज ही पकड़ बी भाती है, और प्रत्येक व्यक्ति अपने सम्ब. पियों का नाम कोश में देखने का इच्छा होता है । तथापि प्रयास किया ही है। संदर्भग्रन्थ-संकेतसूची तथा सामान्य-संकेतसूची भी दे दी गई हैं। इस प्रकार यह बड स्वयं में प्राय: सर्वाषपूर्ण होकर कम से कम इस क्षेत्र में भविष्य में कार्य करने वाले लेखकों के लिए एक सन्तोषजनक माडल का काम तो देगा ही। इसी नमूने पर हमारे द्वारा एकत्रित सामग्री के माधार से बागामी 'कवर्गादि' खण्ड भीमाः प्रकाशित किये जा सकते।
इस कार्य की निष्पत्ति में पूर्वगत विद्वानों के आगीर्वाद एवं प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रेरणा, वर्तमान प्रबुद्ध पाठकों का प्रोत्साहन, तीर्थंकर महावीर स्मृति केन्द्र समिति के महामन्त्री और हमारे अनुज अजितप्रसाद बन(अवकाश प्राप्त उप सचिव, उ.प्र. शासन), पुत्रों डा. शशि कान्त जैन (संयुक्त सचिव, उ०प्र० शासन तथा अध्यक्ष, अनन्त-ज्योति विद्यापीठ) एव रमाकान्त जैन (अनुमचिव, उ.प्र. शासन तथा मन्त्री, मानवीप प्रकाशन), पौत्र नलिन कान्त जैन (मालिक,रत्न-ज्योति प्रेस), संदीप कान्त जन एवं अंशु जैन 'अमर' (एम.ए.-इतिहास एवं पुरातत्व), पौत्रियों कु. मलका एवं कु० शेफाली (प्रत्येक एम.ए., बी.एड.) मादि से यथावश्यक सहायता एव सुविधा प्राप्त हुई है। इस कोश की गुणवत्ता के श्रेय मे वे सब भागीदार हैं, कमियों एवं दोषों का उत्तरदायित्व मात्र कोशकार का है।
____थाशा है, इस कोश का प्रबुद्ध जगन द्वारा उचित स्वागत होगा और इसका उपयोग करने वाले इससे लाभान्वित होगे।
ज्योति प्रसाद जंग
३बून, १९८८ ज्योति निकुन्न, चारबाग, लखनऊ-१९ (उ.प्र.)