Book Title: Jain Hitbodh
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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१७
दुःखदाहि
दुःखकाहि વેવની
વિક્કી
मेरे
मेरीहि मज
८६
१५ मज
संसार
संसारे
राजकथा, देश कथा, कूकर
राजकथा १०३ ८ दूकर १०५ २ मुकये १०८
तरली १०८
विराध
वाषण ११०
संसार ૨૨૨ ૭ ફતે १२६ २ . और १३९
भिन
साधानों १४६
करनी चाहिये १६० । १४ क्षणभर २६१ १३ सघाचार १६३ १० . छूकाकर १६८ २१ आर
तरकी विराधन भाषण संहार उठाते और कितनेक भि न साधनो हीउधम करना करनी क्षणभरमें संघोवरि
१५२
छूपाकर
ૌર

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