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भी इन्हीं जिनकी कृति है । इनके अतिरिक्त जिनदास रचित जिन रचनाओं का उल्लेख मिल सका उनके नाम इस प्रकार हैं :
१ यशोधररास २ आदिनाथरास ३ श्रेणिकरास ४ समकितरास ५ करकंडुरास ६ कर्मविपाकरास ७ श्रीपालरास प्रद्युम्नरास ● धनपालरास १० हनुमच्चरित ११ और व्रतकथा कोषx - जिम में दशलक्षरणव्रतकथा, सोलहकारणव्रतकथा, वाहणषष्ठीव्रतकथा, मोक्षसप्तमीकथा, निर्दोषसप्तमीकथा, श्राकाशपंचमीव्रतकथा और पंचपरमेष्ठी गुण वर्णन प्रादि रचनाओंका संग्रह एक गुटके में पाया जाता है। ये सब रचनाएँ प्रायः गुजराती भाषा में की गई हैं; परन्तु इनमें हिन्दी और राजस्थानी भाषा के शब्दोंका बाहुल्य पाया जाता है । इनके सिवाय निम्न ग्रन्थ पूजा-पाठ विषयक भी हैं और जिनकी संख्या इस समय तक ७ ही ज्ञान हो सकी है उनके नाम इस प्रकार हैं- १ जम्बूद्वीप पूजा २ अनन्तत्रतपूजा ३ सार्द्धद्वय द्वीपपूजा ४ चतुर्विंशत्युद्याप नपूजा ५ मेद्यमालोयापन पूजा ६ चतुस्त्रिंशदुत्तर द्वादशशतोद्यापन बृहत्सद्धचक्रपूजा ।
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इस तरह ब्रह्मजिनदासकी संस्कृत प्राकृत और गुजराती भाषाकी सब मिलाकर २५-३० कृतियोंका अब तक पता चल सका है। इन सब ग्रन्थोका परिचय प्रस्तावनाकी कलेवर वृद्धिके भयसे छोड़ा जाता है । इनके सिवाय इनकी धन्य रचनाएँ और भी गुटको में यत्र तत्र ग्रन्थ भंडारो में मिलती हैं, पर ये सब इन्हीं की कृति हैं इसका निर्णय उनका श्राद्योपात अवलोकन किये बिना नहीं हो सकता, समय मिलने पर इस सम्बन्ध में फिर विचार किया जाएगा ।
वीं प्रशन 'सुदर्शन चरित' की है जिसके कर्ता भ० विद्यानन्द हैं
x इनमें से नं० ६ और ११ के ग्रन्थ श्रामेर भट्टारकीय भंडार में पाये जाते हैं। शेष रासोंमें अधिकांश राखे देहलीके पंचायती मन्दिरखे शास्त्रभंडारमें पाये जाते हैं । और कुछ पूजाएँ, जो गुटकों में सन्निहित हैं ।