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नम्बरके गुटके परसे उपलब्ध हुए हैं। जिनमें एक स्तवन पार्श्वनाथका है और दूसरा शान्तिनाथका । ये दोनों ही स्तवन श्रनेकान्त वर्ष १२ किरण ८-8 में प्रकाशित हो चुके हैं। संभव है श्रम्वेषण करने पर इनकी और भी कृतियाँ उपलब्ध हो जाय ।
११ वीं और १२ वीं प्रशस्तियों 'श्रीपालचरित्र' और 'धर्मोपदेशपोपूषवर्ष' नामके ग्रंथों की हैं, जिनके कर्ता ब्रह्मनेमिदत्त हैं और जिनका परिचय 8 वीं प्रशस्तिमें दिया गया है ।
१३ वीं प्रशस्ति 'उपदेशरत्नमाला' की है जिसके कर्ता भट्टारक सकलभूषण हैं, जो मूलसंघस्थित नन्दिसंघ और मरस्वतीगच्छके भट्टारक विजयकीर्तिके प्रशिष्य और भट्टारक शुभचन्द्रके शिष्य एवं भट्टारक सुमतिकीर्तिके गुरुभ्राता थे । भ० सुमतिकीर्ति भी शुभचन्द्रके शिष्य थे और उनके बाद पट्टधर हुए थे ।
भट्टारक सकलभूषणने नेमिचन्द्राचार्य श्रादि यतियोंके श्राग्रहसे तथा वर्धमानला श्रादिकी प्रार्थनासे 'उपदेशरत्नमाला' नामक ग्रन्थकी रचना वि० सं० १६२७ में श्रावणसुदी षष्ठीके दिन की है। इस ग्रंथकी श्लोकसंख्या तीन हजार तीन सौ अस्सी है। भट्टारक सकलभूषणने भ० शुभचन्द्रको 'पाण्डवपुराण' और 'करकंद्वचरित' इन दोनों ग्रन्थोंके निर्माण में तथा लेखन और पाठनादि कार्योंमें सहायता की थी जिसका उल्लेख भ० शुभचन्द्रने स्वयं करकण्ढ्रचरितकी प्रशस्तिमें किया है। और इससे भ० सकलभूषण विक्रमको १७वीं शताब्दीके सुयोग्य विद्वान थे । उपदेशरत्नमालाके अतिरिक्त इनकी अन्य क्या क्या रचनाएँ हैं यह कुछ ज्ञात नहीं हो सका ।
१५ वीं प्रशस्ति 'श्रावकाचारसारोद्धार' की है। जिसके रचयिता मुनि पद्मनन्दी हैं । पद्मनन्दी नामके अनेक विद्वान हुए हैं। उनमें प्रस्तुत पद्मनंदी भट्टारक प्रभाचन्द्रके पट्टधर शिष्य हैं । जो भट्टारक रत्नकीर्तिके देहली
*"श्रीमत्प्रभाचन्द्रमुनीन्द्रपट्टे शस्वत् प्रविष्ठाप्रतिभागरिष्टः । त्रिशुद्धसिद्धान्तरहस्यरत्नरत्नाकरो नन्दतु पद्मनन्दी ॥ २८ ॥”
- शुभचन्द्र गुर्वावली