Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 10
________________ [ ७ ] के व्यक्तित्व में प्रतिबिबित किये हुए थीं, और युगों-युगों से जन-मानस तीर्थंकरों के माध्यम से ही इन विदुषी नारियों के व्यक्तित्व से परिचित रहा है । उन युगों में जो भी जैन साध्वियाँ तथा विदुषी महिलाएँ हुईं, उनकी अपनी उपलब्धियाँ अवश्य रही होंगी, परन्तु ऐतिहासिक साधनों के अभाव में उन महिलाओं के स्वतन्त्र व्यक्तित्व को उभार कर उनका वास्तविक चरित्र-चित्रण प्रस्तुत कर पाना कठिन है। इस ऐतिहासिक कमी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए मुनि सुशील कुमार जी ने अपने उद्गार प्रकट किये हैं- " महावीर के समय चन्दनबाला साध्वी समाज की प्रमुखा थींमहासती चन्दनबाला के मोक्ष गमन के बाद कौन सौभाग्यशालिनी साध्वी महासती प्रवर्तिनी के पद पर प्रतिष्ठित हुई, इसका वर्णन जैनधर्म के इतिहास में उपलब्ध नहीं है ।" इतिहासवेत्ता श्रीमान् अगरचन्द जी नाहटा ने भी अपने उद्गार प्रकट करते हुए लिखा है, "भगवान् महावीर की प्रथम एवं प्रधान शिष्या चन्दनबाला से लेकर अब तक के साध्वी- समाज का सिलसिलेवार इतिहास प्राप्त नहीं होता है ।" डॉ० कोमलचन्द जैन ने अपनी पुस्तक "बौद्ध एवं जैन आगमों में नारी जीवन" में लिखा है कि "जैन आगमों को आधार बनाकर जैनधर्म में नारी जीवन पर आज तक कोई भी स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं लिखा गया है । " जैनधर्म के इतिहास की इस कमी ने मेरा ध्यान आकर्षित किया और मैंने माता मरूदेवी से प्रारम्भ कर वर्तमान काल तक की जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाओं के जीवन पर कथा ग्रन्थों एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर प्रकाश डालने की कोशिश की है । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के सात अध्यायोंमें जैन धर्मको साध्वियों एवं विदुषी महिलाओं के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विवेचन एवं उनके विशिष्ट धार्मिक कार्यों पर प्रकाश डाला गया है । प्रथम अध्याय में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर तेइस तीर्थंकरों की माताओं, पुत्रियों, उनके समयकी विशिष्ट राज महिलाओं, साध्वियों आदि का वर्णन है । ये सभी विवरण प्रागैतिहासिक कालके है और मुख्यतः जैन कथा ग्रन्थों पर आधारित है । 1 द्वितीय अध्याय में तीर्थंकर महावीर स्वामी के काल की महिलाओं को चार वर्गों में विभाजित किया गया है । महावीर के परिवार की महिलाएँ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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